लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> देवकांता संतति भाग 5

देवकांता संतति भाग 5

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2056

Like this Hindi book 0

चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

'लेकिन उस बेवकूफ ने बख्तावरसिंह की चिलम पी ही क्यों?'' सुनने के बाद पिशाचनाथ भड़क उठा-- ''इतनी गहरी चाल चलने के बाद भी जरा-सी बात में धोखा खा गया ...। हमारा क्या खाक ऐयार है वो -- सारी ऐयारी तो धूल में मिला दी।''

''छोड़ो पिशाच, अब उस पर अफसोस करने से क्या होगा?'' एकाएक मेघराज बीच में बोला-'जो हो गया, सो हो गया। अब वह बात तो लौटकर नहीं आएगी। अब तो आगे सोचो कि क्या करना है? तुम्हारा नम्बर आठ कहता है वे लोग यहीं आ रहे हैं।''

अपने ऊपर काबू पाकर पिशाचनाथ बोला-- ''ठीक है।''

नम्बर आठ अब भी उसके सामने सावधानी के साथ खड़ा हुआ था। उसकी तरफ देखता हुआ, पिशाचनाथ बोला- ''पूरी बात मुख्तसर में बताओ कि वे किस रूप में यहां आ रहे हैं, और यहां आकर वे किस तरह दारोगा साहब को धोखा देना चाहते हैं।''

''बख्तावरसिंह खुद पिशाचनाथ बनेगा और अपने लड़के गुलशन पर वह अपना मेकअप करेगा। इस तरह से वह पिशाचनाथ बनकर विक्रम और बख्तावरसिंह को गिरफ्तार करके यहां लाएगा और दारोगा साहब को धोखा देना चाहेगा कि यह खुद पिशाच है और विक्रम और बख्तावरसिंह को बेहोश करके ले आया है।''

'ठीक है, तुम जाओ और दारोगा साहब के सैनिकों को इस कमरे के चारों तरफ छुपा दो।'' पिशाचनाथ ने हुक्म दिया- ''उन तीनों को आते वक्त बिल्कुल कुछ न कहना, बल्कि हिफाजत से यहां पहुंचा देना...। दारोगा साहब का इशारा पाते ही सब सैनिक उन्हें गिरफ्तार कर लेंगे।''

'जो हुक्म...!'' कहकर नम्बर आठ भी बाहर चला गया।

'आप सुनिए दारोगा साहब!'' पिशाचनाथ मेघराज से बोला- ''मैं इस पलंग के नीचे छुप जाता हूं। वे आएं तो उन्हें आराम से बिठाना और उस वक्त तक उनकी बातों में आने का नाटक करते रहना, जब तक कि मैं खुद पलंग के नीचे से न आऊं।''

इस तरह से कुछ और जरूरी बातें उसे समझाकर पिशाच पलंग के नीचे घुस गया।

अब दारोगा साहब बख्तावरसिंह इत्यादि के आने की राह देख रहे थे।

जल्दी ही इंतजार की घड़ियां समाप्त हो गईं..! पिशाचनाथ, विक्रमसिंह और बख्तावरसिंह को कंधे पर डाले कमरे में दाखिल हुआ और मेघराज से बोला- ''लो जी दारोगा साहब, हम तुम्हारे दोनों दुश्मन पकड़ लाए हैं।''

''बहुत खूब पिशाच।'' मेघराज बोला---''वाकई तुम कमाल के ऐयार हो!''

पिशाचनाथ बने वख्तावरसिंह ने दोनों ही बेहोश जिस्मों को फर्श पर डाला और वोला- 'सुसरों ने मुझे बड़ा परेशान किया।''

'आओ, बैठो!'' मेघराज उसे पलंग पर जगह देते हुए बोला-- ''कहो --क्या-क्या तरद्दुद सामने आया?''

''अगर तुम विक्रमसिंह के नाम वह खत अपने हाथ से लिखकर हमें न देते तो वाकई ये हमारी ऐयारी में नहीं फंसते।''

''लेकिन बख्तावरसिंह के लड़के गुलबदन को कहां छोड़ आए तुम?''

'वह भाग निकला।'' बख्तावरसिंह ने जवाब दिया।

''खैर चलो, वह तो बाद में भी हाथ आएगा ही।'' दारोगा साहब ने कहा--- ''असल डर तो इन दोनों का ही था, सो आप इन्हें पकड़ ही लाए हैं। अब हमें कोई खतरा नहीं है। हमारे कारनामे राजा उमादत्त तक पहुंचाने वाला अब कोई नहीं है।''

'खैर, अब इन्हें तो तहखाने में डालिए और अब दूसरा काम करते हैं।'' पिशाचनाथ ने कहा - 'अब चंद्रप्रभा और रामरतन से कलमदान का पता लगे तो तुम्हारी सारी अड़चनें दूर हो जाएं और तुम राजा बन जाओ।''

अभी दारोगा साहब कुछ कहना ही चाहते थे कि पलंग के नीचे से निकलता हुआ पिशाचनाथ बोल पड़ा- ''सो तो उनकी सारी उलझनें दूर हो ही गई हैं। अब तो तुम अपना हाल कहो।''

इस तीसरी आवाज को सुनकर पिशाचनाथ के भेस में बैठा बख्तावरसिंह चौंक रहा। एकदम उस तरफ देखा और चिहुंककर बोला-- ''तुम- पिशाचनाथ!'' इतने शब्दों के साथ ही बख्तावरसिंह ने अपनी कमर से हर्वा निकाल लिया था।'

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

Bhatat Kankhara

Dec kantt santii6