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देवकांता संतति भाग 6

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2057

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

रूपलाल का बयान खत्म होने के बाद मेघराज फिर बोला- ''उस कमीने बख्तावरसिंह ने इतने पर ही बस नहीं कर दी महाराज। वह हमारे ऐयार विक्रमसिंह की बीवी चंदारानी और लड़की कुंती को भी धोखे में डालकर अपने साथ ले गया।''

''यह हुक्म मैं आपको देता हूं दारोगा साहब!'' उमादत्त बोले- जल्दी-से-जल्दी बख्तावरसिंह को गिरफ्तार करके हमारी खिदमत में पेश किया जाए। उसे हमें ललकारने, रूपलाल के अपमान और विक्रमसिंह की इज्जत पर हाथ डालने की सजा मिलनी ही चाहिए। हमें लगता है कि बख्तावरसिंह जितना काबिल था उतना ही नालायक होता जा रहा है।''

उस दिन उमादत्त के इस हुक्म के साथ ही दरबार बर्खास्त हो गया।'' गणेशदत्त ने अपनी बातें समाप्त कीं।

''इस वक्त इधर-उधर की बातें न करके तुम केवल वही हाल बयान करो गणेशदत्त, जिसमें विकास आदि का जिक्र हो।'' अलफांसे बोला- ''तुमने बख्तावरसिंह का हाल यहां बयान करके एक तरह से समय ही बर्बाद किया है! यहां हमें केवल उन्हीं बातों पर गौर करना है जो हमारे काम की हैं।''

''बख्तावरसिंह की यह कहानी भी आगे चलकर हमारे काफी काम आ सकती है शेरसिंहजी।'' गुरुवचनसिंह बोले- ''आजकल न जाने क्यों उमादत्त की रियासत में बड़े-बड़े अजीब कारनामे हो रहे हैं। पहले वह हमसे दुश्मनी नहीं रखता था... मगर अब न जाने किस सबब से उसके ऐयार हमारे खिलाफ काम करते हैं। बख्तावरसिंह उसका सबसे यकीनी ऐयार था। एक बार उसने बख्तावरसिंह को गौरवसिंह को गिरफ्तार करने का हुक्म दिया। बख्तावरसिंह एक नकली गौरवसिंह को गिरफ्तार करके ले गया। उसका भेद दारोगा ने उमादत्त के सामने खोल दिया। तब से उमादत्त बख्तावरसिंह को अपना दुश्मन समझने लगा। उमादत्त का दिमाग एकदम से क्यों बदल गया है...यह पता लगाने में बख्तावरसिंह हमारे बहुत काम आ सकता है।''

''खैर !'' अलफांसे को विकास इत्यादि का हाल जानने में ज्यादा दिलचस्पी थी- ''तुम आगे अपना हाल कहो।''

गणेशदत्त पुन: आगे का हाल सुनाने लगा-

''मैं उसी प्यादे के भेस में महल में रहा। वहां होने वाली कार्यवाहियों पर मैं गौर रखता था... लेकिन उनमें से कोई भी ऐसी नहीं है, जिसको यहां बताने से किसी तरह का फायदा होता हो। महाराज शेरसिंहजी को वहां होने वाली आज की कार्यवाही में ज्यादा दिलचस्पी है, इसलिए मैं वही सुनाता हूं। 'आज सुबह का पहला पहर शुरू हो चुका था और दरबारेआम लगा हुआ था। उसी वक्त एक चोबदार ने दरबार में हाजिर होकर कहा- ''ऐयारा गोमती कुछ कैदियों के साथ हाजिर हुई है। सुनते ही उमादत्त खुशी से चमक उठे और बोले- ''उसे फौरन पेश किया जाए।''

चोबदार चला गया और कुछ ही देर बाद वहां गोमती, उसके दो ऐयार साथी और बंदर सहित छः कैदी दरबार में दाखिल हुए। पांचों कैदी उस वक्त बेहोश थे और उन्हें गोमती और दो ऐयारों ने गठरी बनाकर कंधे पर डाल रखा था। गोमती ने दरबार में आकर उमादत्त को सलाम किया और कैदियों की गठरियां फर्श पर रख दीं। उमादत्त ने पूछा-- 'क्या सीधी राजनगर से आ रही हो?''

'हां!'' गोमती ने जवाब दिया- ''हमारे और गौरवसिंह के बीच काफी मुकाबला हुआ, उनमें से ये पांच कैदी हमारे हाथ लगे।''

''गोवर्धनसिंह कहां हैं?' उमादत्त ने सवाल किया।

''कह नहीं सकती कि वे जिंदा हैं या मारे गए।'' गोमती ने दुखी मन से कहा- ''रोशनसिंह तो मारा ही गया।''

''क्या कहती हो, रोशनसिंह किस तरह मारा गया?'' उमादत्त चौंककर बोले- ''सारा हाल मुख्तसर में कहो।''

'रोशनसिंह के हत्यारे को हम गिरफ्तार कर लाए हैं।'' गोमती बोली- ''इन्हीं गठरियों में से एक में विकास नाम का एक लड़का है। इसी ने रोशनसिंह को मार डाला। पहले आप इन पांचो कैदियों को देख लें। इनके बारे में जान लें कि ये कौन हैं... तब आराम से मैं अपना हाल बयान करूंगी।''

'ठीक है।'' उमादत्त ने हुक्म दिया-- ''गठरियां खोल दी जाएं।'' एक सिपाही ने आगे बढ़कर हुक्म की तामील की। गठरियां खोलकर छहों बेहोश कैदियों को फर्श पर डाल दिया गया और गोमती एक-एक की ओर इशारा करके बोली- ''ये विकास है, ये ठाकुर निर्भयसिंह है, ये अजय है, जिसे ये लोग ब्लैक व्यॉय भी कहते हैं, ये रघुनाथ है, और इस बंदर को ये लोग धनुषटंकार के नाम से पुकारते हैं।

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