ई-पुस्तकें >> शिव पुराण 3 - शतरुद्र संहिता शिव पुराण 3 - शतरुद्र संहिताहनुमानप्रसाद पोद्दार
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भगवान शिव के विभिन्न अवतारों का विस्तृत वर्णन...
तदनन्तर 'रक्त' नाम से प्रसिद्ध बीसवाँ कल्प आया। उस कल्प में ब्रह्माजी ने रक्तवर्ण का शरीर धारण किया था। जिस समय ब्रह्माजी पुत्र की कामना से ध्यान कर रहे थे, उसी समय उनसे एक पुत्र प्रकट हुआ। उसके शरीरपर लाल रंग की माला और लाल ही वस्त्र शोभा या रहे थे। उसके नेत्र भी लाल थे और वह आभूषण भी लाल रंग का ही धारण किये हुए था। उस महान् आत्मबल से सम्पन्न कुमार को देखकर ब्रह्माजी ध्यानस्थ हो गये। जब उन्हें ज्ञात हो गया कि ये वामदेव शिव हैं तब उन्होंने हाथ जोड़कर उस कुमारको प्रणाम किया। तत्पश्चात् उनके विरजा, विवाह, विशोक और विश्वभावन नाम के चार पुत्र उत्पन्न हुए, जो सभी लाल वस्त्र धारण किये हुए थे। तब वामदेवरूपधारी परमेश्वर शम्भु ने परम प्रसन्न होकर ब्रह्मा को ज्ञान तथा सृष्टिरचना की शक्ति प्रदान की। (यह 'वामदेव' नामक दूसरा अवतार हुआ।)
इसके बाद इक्कीसवाँ कल्प आया, जो 'पीतवासा' नाम से कहा जाता था। उस कल्प में महाभाग ब्रह्मा पीतवस्त्रधारी हुए। जब वे पुत्र की कामना से ध्यान कर रहे थे, उस समय उनसे एक महातेजस्वी कुमार उत्पन्न हुआ। उस प्रौढ़ कुमार की भुजाएँ विशाल थीं और उसके शरीरपर पीताम्बर झलमला रहा था। उस ध्यानमग्न बालक को देखकर ब्रह्माजी ने अपनी बुद्धि के बलसे उसे 'तत्पुरुष' शिव समझा। तब उन्होंने ध्यानयुक्त चित्त से सम्पूर्ण लोकोंद्वारा नमस्कृत महादेवी शांकरी गायत्री (तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि) का जप करके उन्हें नमस्कार किया, इससे महादेव जी प्रसन्न हो गये। तत्पश्चात् उनके पार्श्वभाग से पीतवस्त्रधारी दिव्यकुमार प्रकट हुए, वे सब-के-सब योगमार्ग के प्रवर्तक हुए। (यह 'तत्पुरुष' नामक तीसरा अवतार हुआ।)
तत्पश्चात् स्वयम्भू ब्रह्मा के उस पीतवर्ण नामक कल्प के बीत जानेपर पुन: दूसरा कल्प प्रवृत्त हुआ। उसका नाम 'शिव' था। जब एकार्णव की दशामें एक सहस्र दिव्य वर्ष व्यतीत हो गये, तब ब्रह्माजी प्रजाओं की सृष्टि करने की इच्छा से दुःखी हो विचार करने लगे। उस समय उन महातेजस्वी ब्रह्मा के समक्ष एक कुमार उत्पन्न हुआ। उस महापराक्रमी बालक के शरीर का रंग काला था। वह अपने तेज से उद्दीप्त हो रहा था तथा काला वस्त्र, काली पगड़ी और काला यज्ञोपवीत धारण किये हुए था। उसका मुकुट भी काला था और स्नान के पश्चात् अनुलेपन-चन्दन भी काले रंग का ही था। उन भयंकर पराकमी, महामनस्वी, देवदेवेश्वर, अलौकिक, कृष्णपिंगल वर्ण वाले अघोर को देखकर ब्रह्माजी ने उनकी वन्दना की। तत्पश्चात् ब्रह्माजी उन भक्तवत्सल अविनाशी अघोर को ब्रह्मरूप समझकर इष्ट वचनों द्वारा उनकी स्तुति करने लगे। तब उनके पार्श्वभाग से कृष्णवर्ण वाले तथा काले रंग का अनुलेपन धारण किये हुए चार महामनस्बी कुमार उत्पन्न हुए। वे सब-के-सब परम तेजस्वी, अव्यक्तनामा तथा शिवसरीखे रूपवाले थे। उनके नाम थे- कृष्ण, कृष्णशिख, कृष्णास्य और कृष्णकण्ठधृक्। इस प्रकार उत्पन्न होकर इन महात्माओं ने ब्रह्माजी की सृष्टिरचना के निमित्त महान् अद्भुत 'घोर' नामक योग का प्रचार किया। (यह 'अघोर' नामक चौथा अवतार हुआ।)
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