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शिव पुराण 3 - शतरुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2080

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भगवान शिव के विभिन्न अवतारों का विस्तृत वर्णन...

पुन: छठे द्वापर के प्रवृत्त होने पर जब मृत्यु लोककारक व्यास होंगे और वेदों का विभाजन करेंगे, उस समय भी मैं व्यास की सहायता करने के लिये लोकाक्षि नाम से प्रकट होऊँगा और निवृत्ति-पथ की उन्नति करूँगा। वहाँ भी मेरे चार दृढ़व्रती शिष्य होंगे।उनके नाम होंगे- सुधामा, विरजा, संजय तथा विजय।

विधे! सातवें द्वापर के आरम्भ में जब शतक्रतु नामक व्यास होंगे, उस समय भी मैं योगमार्ग में परम निपुण जैगीषव्य नाम से प्रकट होऊँगा और काशीपुरी में गुफा के अंदर दिव्य देश में कुशासन पर बैठकर योग को सुदृढ़ बनाऊँगा तथा शतक्रतु नामक व्यास की सहायता और संसार भय से भक्तों का उद्धार करूँगा। उस युग में भी मेरे सारस्वत, योगीश, मेघवाह और सुवाहन नामक चार पुत्र होंगे।

आठवें द्वापर के आनेपर मुनिवर वसिष्ठ वेदों का विभाजन करनेवाले वेदव्यास होंगे। योगवित्तम! उस युग में भी मैं दधिवाहन नाम से अवतार लूँगा और व्यास की सहायता करूँगा। उस समय कपिल, आसुरि, पंचशिख और शाल्वल नामवाले मेरे चार योगी पुत्र उत्पन्न होंगे, जो मेरे ही समान होंगे।

ब्रह्मन् ! नवीं चतुर्युगी के द्वापरयुग में मुनिश्रेष्ठ सारस्वत व्यास नाम से प्रसिद्ध होंगे। उन व्यास के निवृत्तिमार्ग की वृद्धि के लिये ध्यान करने पर मैं ऋषभ नाम से अवतार लूँगा। उस समय पराशर, गर्ग, भार्गव तथा गिरीश नाम के चार महायोगी मेरे शिष्य होंगे। प्रजापते! उनके सहयोग से मैं योगमार्ग को सुदृढ़ बनाऊँगा। सन्मुने! इस प्रकार मैं व्यास का सहायक बनूँगा। ब्रह्मन्! उसी रूप से मैं बहुत-से दुःखी भक्तों पर दया करके उनका भवसागर से उद्धार करूँगा। मेरा वह ऋषभ नामक अवतार योगमार्ग का प्रवर्तक, सारस्वत व्यास के मन को संतोष देनेवाला और नाना प्रकार से रक्षा करनेवाला होगा। उस अवतार में मैं भद्रायु नामक राजकुमार को, जो विषदोष से मर जाने के कारण पिताद्वारा त्याग दिया जायगा, जीवन प्रदान करूँगा। तदनन्तर उस राजपुत्र की आयु के सोलहवें वर्ष में ऋषभ ऋषि, जो मेरे ही अंश हैं, उसके घर पधारेंगे। प्रजापते! उस राजकुमार द्वारा पूजित होनेपर वे सद्रूपधारी कृपालु मुनि उसे राजधर्म का उपदेश करेंगे। तत्पश्चात् वे दीनवत्सल मुनि हर्षित चित्त से उसे दिव्य कवच, शंख और सम्पूर्ण शत्रुओं का विनाश करनेवाला एक चमकीला खड्‌ग प्रदान करेंगे। फिर कृपापूर्वक उसके शरीर पर भस्म लगाकर उसे बारह हजार हाथियों का बल भी देंगे। यों माता सहित भद्रायु को भलीभांति आश्वासन देकर तथा उन दोनों द्वारा पूजित हो प्रभावशाली ऋषभ मुनि स्वेच्छानुसार चले जायँगे। ब्रह्मन्! तब राजर्षि भद्रायु भी रिपुगणों को जीतकर और कीर्तिमालिनी के साथ विवाह करके धर्मपूर्वक राज्य करेगा। मुने! मुझ शंकर का वह ऋषभ नामक नव अवतार ऐसा प्रभाववाला होगा, वह सत्पुरुषों की गति तथा दीनों के लिये बन्धु-सा हितकारी होगा। मैंने उसका वर्णन तुम्हें सुना दिया। यह ऋषभ-चरित्र परम पावन, महान् तथा स्वर्ग, यश और आयु को देनेवाला है; अत: इसे प्रयत्नपूर्वक सुनाना चाहिये।

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