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उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
‘मेरे साथ जाने वाले अधिकारी थे जनरल वर्की, जनरल आजम और जनरल खालिद शेख।’
‘‘मैंने कहा, ‘पापा! यह तो आपने बहुत ही साहस का कार्य किया है।’’
‘‘इसमें साहस कुछ नहीं था। एक चतुर लोमड़ी को अपने बुने हुए जाल में ही फंसा लिया था।’’
‘देखो नज़ीर!’ इस समय तक फादर-शरीफ शराब पीकर धुत हो चुके थे। वह अपनी शेखी मारने लगे और कहने लगे, ‘पाकिस्तान में ‘डैमोक्रेसी’ नहीं चल सकती। यहां के लोग इस स्वादिष्ट वस्तु के लिए रुचि नहीं रखते। ये माशा अल्लाह मोमिन हैं और इस्लाम ही एक ऐसी भावना है जिसके लिए ये एक मत हो सकते हैं। इसी कारण अन्य सब बातों से छुट्टी दिलवा कर मैंने इनको जहाद के लिए तैयार करना आरम्भ कर दिया है।’
‘‘मैं फादर की बात सुनकर मुस्करा रही थी। वह समझे कि मैं उनकी बात को पसन्द कर रही हूं। इससे उत्साहित हो वह कहने लगे, ‘जहाद का लक्ष्य भारत के अतिरिक्त अन्य कोई देश नहीं हो सकता। इसलिए भारत के खिलाफ जहाद का नारा लगाकर मैं पाकिस्तान को ‘एक’ रख रहा हूं।’’
‘मगर पापा! ’ मैंने कहा, ‘इससे तो एक दिन भारत से युद्ध करना पड़ेगा।’
‘हां! और मैं इसकी तैयारी कर रहा हूं। यद्यपि मेरी शिक्षा और स्वभाव ब्रिटेन के अनुकूल है, मगर भारत के खिलाफ युद्ध करने को ब्रिटेन पसन्द नहीं करता। इसलिये मुझे अमेरिका की मदद लेनी पड़ रही है।’
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