उपन्यास
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धरती और धनगुरुदत्त
बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती। इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता। आगे... |
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आंख की किरकिरीरबीन्द्रनाथ टैगोर
नोबेल पुरस्कार प्राप्त रचनाकार की कलम का कमाल-एक अनूठी रचना..... आगे... |
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आशा निराशागुरुदत्त
जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास... आगे... |
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नास्तिकगुरुदत्त
खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है... आगे... |
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बनवासीगुरुदत्त
नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित... आगे... |
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सुमतिगुरुदत्तबुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता। आगे... |
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मैं न मानूँगुरुदत्त
मैं न मानूँ... आगे... |
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प्रारब्ध और पुरुषार्थगुरुदत्त
प्रथम उपन्यास ‘‘स्वाधीनता के पथ पर’’ से ही ख्याति की सीढ़ियों पर जो चढ़ने लगे कि फिर रुके नहीं। आगे... |
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पाणिग्रहणगुरुदत्त
संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव आगे... |
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प्रगतिशीलगुरुदत्त
इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है। आगे... |
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कायाकल्पप्रेमचन्दराजकुमार और रानी देवप्रिया का कायाकल्प.... आगे... |
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सेवासदन (उपन्यास)प्रेमचन्दयह उपन्यास घनघोर दानवता के बीच कहीं मानवता का अनुसंधान करता है आगे... |
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ग़बन (उपन्यास)प्रेमचन्दग़बन का मूल विषय है महिलाओं का पति के जीवन पर प्रभाव आगे... |
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अवतरणगुरुदत्त
हिन्दुओं में यह किंवदंति है कि यदि महाभारत की कथा की जायें तो कथा समाप्त होने से पूर्व ही सुनने वालों में लाठी चल जाती है। आगे... |
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कंकालजयशंकर प्रसाद
कंकाल भारतीय समाज के विभिन्न संस्थानों के भीतरी यथार्थ का उद्घाटन करता है। समाज की सतह पर दिखायी पड़ने वाले धर्माचार्यों, समाज-सेवकों, सेवा-संगठनों के द्वारा विधवा और बेबस स्त्रियों के शोषण का एक प्रकार से यह सांकेतिक दस्तावेज हैं। आगे... |