लोगों की राय

उपन्यास >> आशा निराशा

आशा निराशा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7595

Like this Hindi book 6 पाठकों को प्रिय

203 पाठक हैं

जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...


‘‘कल उसे यह समाचार मिला है कि पाकिस्तान में गवर्नर जनरल उसे पाकिस्तान में वापस ले जाने में रुचि प्रकट करने लगे हैं।’’

‘‘और तुम्हारी पत्नी वहां जाना नहीं चाहती?’’

‘‘जी! वह उस देश से घृणा करती है।’’

‘‘ठीक है! उसे कहो कि वह हमारे साथ सम्पर्क रखे। हम अपनी पूरी सामर्थ्य से उसकी रक्षा का यत्न करेंगे।’’

इस दिन अज़ीज पुनः लंच के समय आया। उसकी तीनों बीवियां उसके साथ आयीं। नज़ीर उनसे मिल कर अति प्रसन्न हुई और चारों मिल कर खाने के समय और उसके पीछे भी आधा घंटा तक पाकिस्तान के विषय में बाते करती रहीं। अज़ीज साहब की सबसे बड़ी बेगम इनायत बोली, ‘‘हमारे साहब कह रहे हैं कि गवर्नर जनरल बहादुर अपनी लड़की को इस्लामाबाद में रखने के लिए बहुत ख्वाहिशमन्द हैं।’’

‘‘आंटी! तुम बताओ। यदि चाचा को वहां जबरदस्ती बुलाया गया तो तुम वहां जाना पसन्द करोगी?’’

‘‘मैं तुम्हारे अंकल से कह रही हूं कि यहां नौकरी से इस्तीफा देकर विलायत चले चलें। वहां हमारी हिफाज़त अच्छी तरह से हो सकेगी। वर्ना यहां तो कुछ वैसी ही हालत पैदा हो रही मालूम होती है जैसी कि अहमदियों के कत्ले-आम के वक्त हुई थी। पहले रियाया ने सरकारी हिमायत के लोगों का कत्ले-आम किया और पीछे सरकारी सैनिकों ने रियाया के हजारों लोगों को गोलियों से भून डाला। उन हजारों में हम भी तो हो सकते हैं।’’

‘‘और अंकल क्या कहते हैं?’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book