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उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
नज़ीर इस सावधानी से समझ रही थी कि वह समझदार पुलिस अधिकारी के संरक्षण में पहुंच गई है। जब तक चाय बनकर आई, वह अधिकारी दूसरे कमरे में जा किसी स्थान पर टेलीफोन करने लगा। नज़ीर अभी चाय पी ही रही थी कि वही ऑफिसर आया और बोला, ‘‘जिस गाड़ी से आपकी गाड़ी का ऐक्सीडेण्ट हुआ है, वह पाकिस्तानी गाड़ी थी। इस समय वह और उसका ड्राइवर थाने में हैं और उनसे पूछताछ हो रही है।
‘‘मैंने यू० के० हाई कमिश्नर के कार्यालय में भी टेलीफोन कर दिया है और वहां इस ऐक्सीडेण्ट की बात बता दी है। वह आपके यहां आने पर निश्चिन्त हो गये हैं।’’
एक घण्टा भर प्रतीक्षा करने पर नज़ीर ने कोठी के बेयरा से पूछा, ‘‘वह साहब जो मेरे साथ आये थे, कहां है?’’ उसे वहां से गए पौन घंटा हो चुका था।
बेयरा ने बताया, ‘‘हुजूर! मैं जानता नहीं। वह यह कहकर गये हैं कि आपको किसी वस्तु की आवश्यकता हो तो मैं आपकी खिदमत करूं।’’
‘‘मैं बाथरूम में जाना चाहती हूं।’’
‘‘तो आइए!’’ बेयरा नज़ीर को एक बैड रूम में अटेच्ड बाथरूम में ले आया और उसके बाथ-रूम में जाते ही वह बैड रूम से बाहर आया और उसके बैड-रूम को बन्द कर बाहर से ताला लगा दिया।
नज़ीर बाथ-रूम से निकली तो अपने को बैड-रूम में बन्द पा पहले तो दरवाजा खटखटाने लगी, परन्तु इसका जब कुछ परिणाम नहीं निकला तो उसे समझ आ गया कि उसके शोरो-गुल की आवाज कोठी से बाहर नहीं जाती। इससे वह विचार करने लगी कि यह कौन लोग हो सकते हैं? संभव है कि ये भी पाकिस्तानी हों और जो भी घटना हुई है, सब जान-बूझकर की गई हो।
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