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उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
‘‘हम यहीं कोई प्राइवेट मकान भाड़े पर लेकर यहां के पुस्तकालय के प्रयोग की स्वीकृति ले लेंगे। अन्यथा मेरी एक अन्य योजना है। हम यहां से कार्य छोड़ कर बर्लिन चले जायें। वहां तो इससे भी बड़ा पुस्तकालय है।’’
‘‘देखें क्या होता है! अभी तो हमें यही आशा करनी चाहिये कि छुट्टी मिल जाएगी।’’
इस समय क्वार्टर के बाहर से किसी ने घन्टी बजायी। मैत्रेयी ने उठ कर द्वार खोला और वहां मिस्टर बागड़िया तथा तेजकृष्ण की माता जी को देख प्रसन्नता से उबलते हुए उसने हाथ जोड़ नमस्ते कर और यह कहते हुए उन्हें भीतर ले गयी, ‘‘आप बहुत अच्छे समय पर आये हैं। मिस्टर साइमन भी आये हुए हैं। मैं चाहूंगी कि आपका उनसे परिचय करवा दूं।’’
ये सब सिट्टिंग रूम में पहुंचे तो साइमन और मिस्टर बागड़िया परस्पर एक-दूसरे को पहचान गए। अतः प्रोफेसर उठ हाथ मिला बागड़िया दम्पति का स्वागत करने लगा।
मिस्टर बागड़िया ने कहा, ‘‘आपसे एक दिन पहले भी लन्दन ऐक्सचेंज पर भेंट हुई थी। यद्यपि मैं यह नहीं समझ सका था कि आप ही ‘ब्राईड ग्रूम’ (दूल्ला) का रोल अदा कर रहे हैं।’’
‘‘रोल?’’ विस्मय में साइमन बागड़िया का मुख देखने लगा। परन्तु तुरन्त ही उसने सतर्क हो कहा, ‘‘हां! इस संसार के ड्रामा में सब अपना-अपना अभिनय करते हुए रह रहे हैं। वास्तव में यह सब कुछ ऐसा नहीं है जैसा कि हमें दिखायी देता है। सब कुछ एक सुनहरे ढकने से ढका हुआ है भीतर तो कुछ अन्य ही है।
‘‘मुझे यह देख विस्मय हुआ है कि आप मिस मैत्रेयी से परिचित हैं।’’
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