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उपन्यास >> नास्तिक

नास्तिक

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :433
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7596

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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...


इस पर अब्दुल हमीद ने पण्डित रविशंकर और उसकी बगल में बैठी महादेवी की ओर देखा। वे प्रसन्न और निःसंकोच भाव में खाना खा रहे थे। महादेवी की बगल में हमीदा का छोटा लड़का रहमान हाथ में मुर्गे की टाँग पकड़ मुख से मांस उखाड़-उखाड़ कर मजे में खा रहा था। इस पर भी अब्दुल हमीद को पण्डित और पण्डितायिन के मुख पर किसी किस्म की अरुचि के लक्षण दिखाई नहीं दिये।

इससे वह सन्तुष्ट था। उसने हमीदा से कहा, ‘‘एक बात से मुझे खुशी हासिल हुई है। वह यह है कि यह हिन्दू खानदान दूसरे हिन्दुओं से कुछ मुख्तलिफ है। मैं उम्मीद करता हूँ कि जल्दी ही ये सबके सब इस्लामी मिल्लत में इजाफा करेंगे।’’

इस पर हमीदा ने अपने खाविन्द को बताया, ‘‘एक इजाफा तो यासीन की बीवी करने वाली है। वह हामला है।’’

‘‘ओह! मैं अभी कर रहा था कि यह हिन्दू की बेटी जब कोई मोमिन पैदा करेगी, जब जानूँगा।’’

‘‘तो वह पैदा कर रही है। मगर अभी दूसरे महीने में मालूम होती है।’’

‘‘मैं समझता हूँ कि तुम यहीं रह जाओ। तुम्हें सरवर से ज्यादा तजुरबा है।’’

‘‘मगर मैं आपके बिना यहाँ एक रात नहीं रह सकती।’’

‘‘बेगम! मगर मैं तो अब बूढ़ा हो रहा हूँ और तुम भी पाँच साल से बाँझ ही रही हो।’’

‘‘मगर मैं इसकी बात नहीं कर रही। मैं तो आकी सोहबत, जो इस काम के अलावा है, की बाबत कह रही हूँ।’’

‘‘हाँ! अब तो तुम हमारे पलँग पर आने से परहेज करती हो।’’

‘‘मगर हजरत! आपके दीदार जो हर रात हासिल होते हैं। बस, इसी की तमन्ना रहती है।’’

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