उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
‘‘ज्ञान भैया!’’ कमला ने कहा, ‘‘मैं अब सोने जा रही हूँ। नहीं तो सुबह नींद नहीं खुलेगी।’’
वह गई तो ज्ञानस्वरूप ने पूछा, ‘‘इतनी देर तक क्या करती रही हो?’’
‘‘आज दादा का इसके नाम पत्र आया है। उसमें उसने अपनी जबान के शब्द ही लिखे थे और उन सबका अर्थ इसे समझाती रही हूँ। मैंने इसे बताया कि कुछ ऐसा करना चाहिए कि जिससे माता-पिता का विरोध कम हो जाए। उसके लिए मैंने उसे कहा कि वह अपना नाम बदल दे। जब उसने मंजूर किया तो मैंने इसका नाम कमला रख दिया है।’’
‘‘मैं समझती हूँ कि नाम बदलने से पिताजी का विरोध नरम पड़ जाएगा।’’
‘‘मुझे अम्मी ने इसकी चिट्ठी के विषय में बताया है, मगर मैंने उसे कहा है कि मैं असली मुसलमान हूँ और मेरे वालिद शरीफ तो धोखा हैं। वे इसलाम खुदा मजहब का अर्थ ही नहीं समझते।’’
‘‘मैंने उनको बताया कि अब्बाजान ने मुझे तुम्हारे साथ क्या सलूक करने के लिए कहा है। यह सुन उनकी आँखें भीग गईं और वह उठकर अपने कमरे में भाग गईं। मुझे कुछ ऐसा समझ आया है कि अम्मी ने अपने कमरे का द्वार भीतर से बन्द कर लिया है।’’
‘‘यह तो चिन्ता की बात है। वह जिन्दगी से निराश हो गई प्रतीत होती हैं।’’
‘‘मेरा ख्याल है कि ऐसा नहीं है। उनको कुछ अपने पिछले जीवन की बात स्मरण आ गई है। इसी कारण वह दुःख अनुभव करती हुईं कमरे में चली गई हैं और मैं समझता हूँ, वह अवश्य रो रही होंगी।’’
‘‘अब यह लड़की कह रही है कि अपना नाम यह अम्मी को बताएगी और पीछे मेरे दादा को लिखेगी।’’
‘‘मैं समझती हूँ, इससे घर में विस्फोट की स्थिति उत्पन्न हो जाएगी।’’
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