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नास्तिक
नास्तिक
प्रकाशक :
सरल प्रकाशन |
प्रकाशित वर्ष : 2016 |
पृष्ठ :433
मुखपृष्ठ :
ईपुस्तक
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पुस्तक क्रमांक : 7596
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
‘‘करते तो जमीन से हैं, मगर मेहनत तो वे करते ही हैं।’’
‘‘और मेहनत करने की ताकत कहाँ से आती है? अन्न से। और इन सबका मूल कारण परमात्मा जिसे आप खुदा कहते हैं, वह ही है।’’
मुहम्मद यासीन मुख देखता रह गया। कुछ सोचकर बोला, ‘‘हाँ! बचपन में वालिद शरीफ ने नमाज सिखाई थी। वह अदा किया करता था। अब ठीक-ठीक याद नहीं रही।’’
‘‘वह किस किताब में लिखी रहती है?’’
‘‘है तो कुरान-शरीफ में। मगर मैं अरबी नहीं पढ़ा। पहले तो तोते की भाँति याद कर रखी थी।’’
‘‘मगर उसे अपनी जबान में क्यों नहीं पढ़ते? अरबी में पढ़ने की क्या जरूरत है?’’
यासीन मुस्कराया और कहने लगा, ‘‘अब्बाजान कहते थे कि खुदा दूसरी कोई ज़बान नहीं जानता।’’
प्रज्ञा मुस्कराई और बोली, ‘‘आपके अब्बाजान का खुदा बहुत ही ला-इल्म है?’’
‘‘परन्तु तुम रोज उठकर किस ज़बान में पूजा किया करती हो?’’
‘‘संस्कृत भाषा में करती हूँ, मगर मैं तो उसके एक-एक शब्द के अर्थ समझती हूँ।’’
‘‘तो फिर? मुहम्मद यासीन ने पूछ लिया।
‘‘मेरी राय है कि कल सवेरे-सवेरे उठा करिए और गुसल कर मेरे साथ बैठकर खुदा को याद किया करिए।’’
‘‘कैसे किया करूँ १ मुझे बता दो।’’
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