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नास्तिक
नास्तिक
प्रकाशक :
सरल प्रकाशन |
प्रकाशित वर्ष : 2016 |
पृष्ठ :433
मुखपृष्ठ :
ईपुस्तक
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पुस्तक क्रमांक : 7596
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
‘‘तो यह कि अब आप हैं ज्ञानस्वरूप। मैं अब आपसे इस इल्म वाली, मेरा मतलब है ज्ञानमयी वाणी में ही बात किया करूँगी। इससे मुझे तो लाभ होगा ही साथ ही आपके ज्ञान में भी वृद्धि होगी। जब भी कोई बात समझ में न आए तो फौरन उसके मायने पूछ लिया करिए। यही तरीका है जिससे माँ-बाप बच्चों को जबान सिखाते हैं और बच्चे ज्ञानवान होते हैं। अच्छी जबान के प्रयोग से उनके ज्ञान में वृद्धि होती है।’’
यही बात प्रज्ञा ने उस दिन नगीना को समझाई थी, जिस दिन उसका नाम कमला रखा था। प्रज्ञा ने बताया था, ‘‘तुम कमल फूल की तरह सुन्दर और खिली हुई हो। इसी से कमला हो।’’
‘‘अगर कोई दूसरी भी ऐसी हो तो?’’
‘‘तो वह भी कमल हो सकती है। एक ही नाम के एक से अधिक शख्स हो सकते हैं। तब एक को दूसरे से पृथक् जानने के लिए कुछ विशेषण लगाने पड़ेंगे। उदाहरण के रूप में मैं प्रज्ञा हूँ। कोई दूसरा भी प्रज्ञा हो सकती है। इसलिए मैं हूँ प्रज्ञा पत्नी श्रीमान ज्ञानस्वरूप।
‘‘इसी प्रकार तुम्हारी भी तारीफ हो जाएगी। मगर कमल नाम से ही तुम्हारे गुणों का प्रदर्शन होगा।’’
अब समस्या आई सरवर की। प्रज्ञा ने उसका नाम सरस्वती रख दिया और बताया कि इसका अर्थ है सरस्वती। मतलब यह कि एक लुभायमान तरीके से वर्णन करने वाली। यह भाषा भी हो सकती है।
प्रज्ञा ने आगे कहा, ‘‘जब आपने अपने लिए नाम पूछा तो तुरन्त मेरा दिमाग सोचने लगा कि आपके किस अमल पर आपका नाम रखा जाए। आपके मेरे साथ व्यवहार और पिछली रात की बातचीत से जो देखा है, उससे यही मन में आया है। आप बहुत ही सरल स्वभाव हैं और सदा मीठी बोलती है। इसीलिए इसके मुताबिक ही शब्द मन में प्रस्फुटित हो गया। आप हैं सरस्वती। मैं हर रोज स्वाध्याय करने बैठती हूँ तो पहले सरस्वती देवी, मेरा मतलब है इल्म की देवी को नमस्कार कर ही बैठती हूँ।’’
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