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उपन्यास >> बनवासी

बनवासी

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :253
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7597

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नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...

7

घायलों की दुर्दशा देख सोफी अत्यन्त दुःखी थी। उसके मन में एक बात आई कि तुरन्त अमेरिका से धन और जन की अपील की जाए। उसने ‘क्रिश्चियन मिशन्स फॉर ईस्ट’ की अमेरिकन शाखा को एक कॉन्फीडैंशल पत्र लिखने का विचार कर लिया। वह लिखना चाहती थी कि यदि तुरन्त सहायता न भेजी गई तो कुत्तों की मौत सहस्त्रों के मर जाने की सम्भावना है।

सोना तो घायलों की अवस्था देख-देख रो रही थी। प्रत्येक कैम्प में हाय-हाय मची हुई थी। वह अनेक घायलों को ऐसा पाती थी कि उनकी चिकित्सा यदि वनवासियों के तरीके से की जाती तो अब तक तो वे ठीक हो गए होते। इस कारण उसने सोफी को कहकर डॉक्टर से पूछ लिया, ‘‘इन घायलों को अपने देश की जड़ी-बूटियों से चिकित्या क्यों नहीं करने दी जाती?’’

‘‘सरकारी अस्पतालों में ‘क्वेकरी’ चलने नहीं देना चाहते।’’

‘क्वेकरी’ सुनकर सोफी को धनिक की चिकित्सा का स्मरण हो आया। वह हंस पड़ी और पूछने लगी, ‘‘आपको किसने कहा है कि वह ‘क्वेकरी’ होती है?’’

‘‘इनमें एक व्सक्ति था। उसने यही बात कही थी, जो यह औरत कह रही है। मैंने उसको एक घायल के घावों पर दवाई लगाने की स्वीकृति दे दी।

‘‘वह स्वयं तो ‘बम्ब ब्लास्ट’ से अन्धा हो गया है, उसको दिखाई नहीं देता। उसने अपने एक साथी को समझाकर जंगल में से एक जड़ी मँगवाई। उस पर कितनी ही मिट्टी लगी हुई थी और मुझे विदित नहीं था कि वह क्या वस्तु है। उसने मिट्टी सहित जड़ी को पिसवाकर अपने तथा अपने साथी के घावों पर लगवा दिया। मैं मना करता रहा कि घाव के सैप्टिक होने की सम्भावना है, परन्तु वह नहीं माना। उन दोनों को लाभ अवश्य हुआ है, परन्तु मैं वैसे अनसाइन्टिफिक इलाज की इस अस्पताल में स्वीकृति नहीं दे सका।’’

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