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उपन्यास >> बनवासी

बनवासी

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :253
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7597

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नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...

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चिकित्सा-कार्य आरम्भ हो गया। सोना घावों और अन्य चोटों को देखकर अपने पति को समझाती थी। वह उसको जड़ी का नाम बताता था। जड़ी ढूँढ़कर लाई जाती। उसको कूट-काटकर घावों पर लगा दिया जाता।

एक दिन में ही सैकड़ों घायलों की मरहम-पट्टी हो गई। उसी सायं-काल को जब सोफी वार्डन के घर पहुँची तो डॉक्टर ने एक लम्बी-चौड़ी शिकायत लिखकर तैयार कर रखी थी। उसमें सोफी पर यह आरोप लगाया गया था कि वह डॉक्टर के कार्य में अनावश्यक हस्तक्षेप कर रही है। इस कारण वह चाहता था कि उसको कैम्प अस्पताल से वापस बुला लिया जाए।

यह बात जानकर सोफी मुस्कराई और बोली, ‘‘डॉक्टर, तुमने यदि यह शिकायत भेजी, तो मैं यहाँ के अस्पताल की पूर्ण अवस्था जो मैं देखकर आई हूँ और अस्पताल की गन्दगी का पूर्ण वृत्तान्त लिखकर भेज दूँगी।

‘‘साथ ही मैं यह भी बता देना चाहती हूँ कि मैं यह हस्तक्षेप जनरल की पत्नी होने की हैसियत से नहीं, प्रत्युक्त ईसाई मिशन की प्रबन्ध-समिति की सदस्या होने के नाते कर रही हूँ।

‘‘मेरी राय मानों तो इस रिपोर्ट को फाड़ डालो और कल से जितना काम तुम कर सकते हो, करो। शेष तुम हमारे ऊपर छोड़ दो। हम तुम्हारे रोगियों की चिकित्सा में हस्तक्षेप नहीं करेंगे और तुम हमारे काम की टीका-टिप्पणी मत करना।’’

‘‘कितने घायलों की पट्टी कर दी गई है?’’

‘‘आज तो दो सौ के लगभग की ही हो पाई है। कल इससे अधिक की हो जाएगी।’’

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