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उपन्यास >> बनवासी

बनवासी

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :253
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7597

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नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...


‘‘उनको छोड़ दो।’’

‘‘उनको तो हम छोड़ देंगे; किन्तु हमारी दो ओरतों को, जिनका विवाह हो चुका है, सेना और ईसाइयों ने बलपूर्वक पकड़कर रखा हुआ है।’’

‘‘यह तो हमको पता नहीं। उसका पूर्ण वृतान्त बताओ तो जाँच-पड़ताल करेंगे।’’

‘‘एक का नाम सोना है। उसको लुमडिंग के कमांडिग जनरल की बीवी ने छिपाकर रखा हुआ है। दूसरी का नाम बिन्दू है। वह स्टोप्सगंज के मास्टर स्टीवनसन के पास है।’’

‘‘यह हम जाँच करेंगे और यदि यह बात ठीक हुई तो उन औरतों को छुड़ा दिया जाएगा। तुम इन औरतों को छोड़ दो।’’

‘‘हमारी औरतों के छूटकर आने पर ही हम उमको छोड़ेंगे।’’

‘‘जानते हो यहाँ किसका राज्य है?’’

‘‘यहाँ पर हमारा राज्य है। यह नागों का देश है। आदिकाल से हम यहाँ के राजा हैं।’’

‘‘और अंग्रेज़ यहाँ पर क्या हैं?’’

‘‘असम देश के वे कुछ हो सकते हैं, किन्तु नागदेश के वे कुछ नहीं हैं।’’

‘‘उनकी शक्ति को जानते हो?’’

‘‘जानता हूँ। फिर भी हमारा एक-एक आदमी मर जाएगा, किन्तु अपनी औरतों को दूसरे के अधिकार में नहीं रहने देगा।’’

‘‘देखो मैं वचन देता हूँ कि तुम्हारी औरतें, यदि वे आना चाहेंगी तो, आ जाएँगी। तुम इन निरपराध औरतों को छोड़ दो।’’

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