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उपन्यास >> बनवासी

बनवासी

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :253
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7597

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नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...


सोना ने अंग्रेज़ी सेना को एकत्रित होते देखा था। उनके साथ तोप और टैंक वगैरह भी देखे थे। वह जानती थी कि नाग सैनिकों के पास तो तीर-कमान के अतिरिक्त अन्य कोई प्रबल अस्त्र है ही नहीं। इस कारण वह युद्ध को नाग सैनिकों के पक्ष में नहीं मानती थी।

साथ ही उसको यह पता चला कि यह सब झगड़ा केवल उसके कारण ही हो रहा है, तो उसे अपने व्यवहार पर लज्जा अनुभव होने लगी। उसने वापस जाने में अपनी रज़ामन्दी प्रकट कर दी।

सचिव ने सन्देश भेज दिया। सन्देश मिलने पर सौनिक घेरा उठा लेने की बात कर दी गई। साथ ही अंग्रेज़ औरतों को जंगल में मार डालने की धमकी दी गई। यह सुन सैनिक अधिकारी तुरन्त आक्रमण करने की राय देने लगे। सचिव ने युद्ध टालने का अन्तिम प्रयत्न करने के लिए चीतू सरपंच से बातचीत करने का सन्देश भेज दिया और उसके उत्तर में चीतू का सिर भाले पर टँगा हुआ आ गया।

अब सचिव के सम्मुख युद्ध रोकने का कोई उपाय नहीं था। फिर भी उसकी सम्मति यही थी कि कोई ऐसा उपाय किया जाय जिससे हत्याएँ कम हों। परन्तु सैनिक अधिकारियों ने इस सम्मति की ओर ध्यान नहीं दिया। उनका विचार था कि शत्रु को अधिक-से-अधिक हानि पहुँचनी चाहिए जिससे फिर सौ वर्ष तक किसी में ऐसा विद्रोह करने का साहस ही उत्पन्न न हो।

सचिव को कह दिया गया कि उसका काम पूर्ण हो गया है। यह अब सेना के विचार का प्रश्न है कि कितनों की हत्या करे और किस प्रकार करे। सोना को पुनः लुमडिंग भेज दिया गया।

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