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उपन्यास >> सुमति

सुमति

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :265
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7598

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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।


‘‘ओह हाँ! यह तो मुझसे भूल हो गई। आओ, चलो इससे मिलें।’’

‘‘मैं सामान पैक करवाती हूँ। आप उसे पकड़ लाइए।’’

सुदर्शन उस ओर चला गया, जहाँ नलिनी खड़ी ओवलटीन का डिब्बा खरीद रही थी। सुदर्शन ने धीरे से आवाज दी, ‘‘नलिनी बहन!’’

नलिनी मन में अनुमान लगा रही थी कि उसके पीछे आकर खड़ा होने वाला डॉक्टर सुदर्शन है। इस पर भी उसने विस्मय का भाव दर्शाते हुए कहा, ‘‘ओह । डॉक्टर सुदर्शन!’’

‘‘अभी डॉक्टर नहीं बना नलिनी। केवल भैया सुदर्शन कहो।’’

‘‘कहाँ घूम रहे हैं?’’

‘‘कुछ सामान इत्यादि लेने आया था। वह देखो, तुम्हारी बधाई की एक महीने से प्रतीक्षा करती हुई सुमति खड़ी है।’’

नलिनी ने सुदर्शन की इंगित दिशा की ओर देखा और ऐसा भाव दर्शाया जैसे वह उसको पहचानती ही न हो। उसने हाथ में पकड़ा हुआ, ‘‘ओवलटीन’ का डिब्बा सेल्समैन को पैक करने के लिए दिया और सुदर्शन से बोली, ‘‘तो यह आपकी पत्नी है!’’

सुदर्शन ने मुस्कराते हुए कहा, ‘‘हाँ, उसने ही तुम्हें पहचानकर मुझको तुम्हारे पास भेजा है।’’

विवश नलिनी को सुमति की ओर आना पड़ा। सुमति काउंटर पर खड़ी मूल्य दे रही थी। नलिनी आई तो सुमति ने हाथ जोड़कर नमस्कार किया नलिनी ने कहा, ‘‘डॉक्टर साहब कहते हैं कि आपने ही मुझको पहचाना है। बहुत विचित्र है! एक पलक की झपक तक ही तो आपने मुझे देखा था।’’

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