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उपन्यास >>
सुमति
सुमति
प्रकाशक :
सरल प्रकाशन |
प्रकाशित वर्ष : 2016 |
पृष्ठ :265
मुखपृष्ठ :
ईपुस्तक
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पुस्तक क्रमांक : 7598
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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।
एकाएक उसको अपने एक सहयोगी प्रो० श्रीपति चन्द्रावरकर की बहन नलिनी का स्मरण हो आया। नलिनी को वह नाली में गिरी हुई कली, चखा हुआ मधु, नोचा गया पत्ता ही समझने लगा था। कुछ दिनों से नलिनी उसको प्रोत्साहित कर रही थी कि वह उससे विवाह का प्रस्ताव करे। उसके हाव-भाव तथा प्रेममय वार्तालाप में अग्रसर होने से कई बार वह प्रस्ताव करने के लिए तैयार भी हुआ था, परन्तु आज वह विचार करता था कि यह उसका भाग्य ही था जो उसके ऐसा प्रस्ताव करते समय उसका मुख बन्द कर देता था। सदैव कुछ-न-कुछ ऐसी बात घट जाती थी जिससे वह प्रस्ताव करता-करता रुक जाता था।
प्रो० चन्द्रावरकर महाराष्ट्र का रहने वाला था। उसका पिता भारत सरकार के एक मंत्रालय में साधारण क्लर्क था। जब वह रिटायर हुआ था, तब उसका लड़का और लड़की दिल्ली के एक कॉलेज में पढ़ते थे। अतः वह लौटकर महाराष्ट्र वापस नहीं जा सका। दिल्ली में मदरसा रोड पर एक मकान भाड़े पर लेकर वह रहने लगा। अब लड़का श्रीपति एम० ए० पास कर हिंदू कॉलेज में प्राध्यापक बन गया और नलिनी बी० ए०, बी० टी० कर मराठा गर्ल्ज स्कूल में अंग्रेजी पढ़ाने लगी थी।
सुदर्शन और श्रीपति, दोनों लगभग एक ही आयु के थे। सुदर्शन रसायनविज्ञान विषय में एम० एस-सी० कर, डॉक्टरेट के लिए अपना थीसिस दे रखा था। जब से उसको डॉक्टरेट मिलने पर विश्वास हुआ था, उसके मित्र की बहन उस पर डोरे डालने लगी थी।
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