लोगों की राय

उपन्यास >> प्रारब्ध और पुरुषार्थ

प्रारब्ध और पुरुषार्थ

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :174
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 7611

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

47 पाठक हैं

प्रथम उपन्यास ‘‘स्वाधीनता के पथ पर’’ से ही ख्याति की सीढ़ियों पर जो चढ़ने लगे कि फिर रुके नहीं।

2

सराय का मालिक रामकृष्ण भटियारा था। तीस वर्ष पूर्व वह मथुरा के समीप एक गाँव से आगरा जाता हुआ थकावट दूर करने के लिए सड़क के किनारे बने एक कुएँ की जगत पर बैठ गया। उसने अपने थैले से डोर-लोटा निकाल कुएँ से जल निकाल कर पिया कुएँ का जल ठंडा और मीठा था। कुएँ के समीप घनी छाया का एक पीपल का पेड़ देखकर वह विचार करने लगा कि आगरा में क्या रखा है। यहीं क्यों न दुकान कर ले। दिल्ली-आगरा की सड़क तब भी बहुत चालू थी। रामकृष्ण के बैठे-बैठे पंद्रह-बीस यात्री आए जो कुएँ से जल निकाल पी चलते गए।

रामकृष्ण गाँव में सबसे निर्धन व्यक्ति था। वहाँ खाने को तो मिल जाता था, परंतु जीवन की अन्य आवश्यकताओं के लिए नकद कुछ नहीं मिलता था। अपने गाँव में भी वह चने, मक्की, बाजरा भून-भूनकर गाँववालों को दिया करता था, और उसके बदले में गाँव वाले उसे गेहूँ, गुड़, शाक-भाजी इत्यादि दे जाते थे। कोई धनी भूमिपति कभी फटा-पुराना कपड़ा भी दे जाता था, परंतु नकद एक भी पैसा उसके हाथ में नहीं आता था।

माता-पिता विहीन रामकृष्ण गाँव के जीवन से ऊब नगर में अपने भाग्य की परीक्षा लेने चल पड़ा था। मार्ग में कुएँ पर स्वयं थकावट दूर करने और जल पीने बैठा तो उसके देखते-देखते कई यात्री आए और उसके डोरी-लोटे से जल निकाल पी चल दिए। कोई आगरा को कोई मथुरा को।

रामकृष्ण मन में कल्पना के घोड़े दौड़ाने लगा। परिणामस्वरूप वह कुएँ की जगत पर बैठा ही रह गया। लोग आए और चलते गए। सायंकाल हो गया और वह कुएँ की जगत पर ही एक ईंट का तकिया बनाकर लेट गया।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book