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दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642

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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...

दो भद्र पुरुष

प्रथम परिच्छेद

: १ :

एक लखपति था और दूसरा मज़दूर। एक ठेकेदार था, दूसरा स्कूल-मास्टर। एक नई दिल्ली में बारहखम्भा रोड पर दुमंजिली कोठी पर रहता था, दूसरा बाज़ार सीताराम के कूचा पातीराम की अँधेरी गली के अँधेरे मकान में। एक मोटर में बैठकर काम पर जाता था तो दूसरा बाइसिकल पर। एक उत्तम विलायती वस्त्र धारण करता था दूसरा खद्दर का पायज़ामा, कुरता, जाकेट, और टोपी।

फिर भी दोनों में परस्पर सम्बन्ध था। एक बहनोई था और दूसरा साला। यह चमत्कार इस कारण नहीं था कि स्कूल-मास्टर की बहिन बहुत सुन्दर थी और वह लक्षाधिपति उस पर मुग्ध हो गया था, प्रत्युत दोनों में यह सम्बन्ध इस कारण बना था कि दोनों एक ही बिरादरी के व्यक्ति थे।

सन् १९॰५ में लाहौर के एक मोहल्ले में लाला गिरधारीलाल खन्ना का लड़का गजराज जब पन्द्रह वर्ष का हुआ तो उसके पड़ोस में रहने वाले सोमनाथ कपूर की स्त्री सरस्वती गिरधारीलाल के घर आई और उसकी स्त्री से कहने लगी, ‘‘बहिन! लक्ष्मी के सिर पर हाथ रख दो तो हमारा बोझा हल्का हो जाय।’’

गजराज की माँ परमेशरी ने लक्ष्मी को देखा हुआ था। लड़की गोरी और सुन्दर थी। साथ ही कभी मिल जाती तो हाथ जोड़ ‘मौसी राम-राम’ भी कह देती थी। बात उसके मन लगी। केवल एक शंका थी कि गजराज के पिता कहीं कुछ दहेज न माँग लें। वह जानती थी कि किन्हीं परिवारों के लड़के वाले दहेज माँगने लगे हैं। वह स्वयं तो इस विषय में उदार विचारों वाली थी, परन्तु अपने पति के विषय में कुछ नहीं कह सकती थी। अतएव उसने कहा, ‘‘बहिन! लक्ष्मी तो अपनी ही लड़की है। जात-बिरादरी भी ठीक है। फिर भी गजराज के पिता से पूछ लूँ। तभी बात पक्की होगी।’’

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