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दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642

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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...


‘‘हाँ, इसी से तो वह सब तकलीफ भूल गई हूँ, जो इसने आते समय दी थी।’’

शरीफन मुस्करायी तो गजराज भी हँस दिया। उसने कहा, ‘‘इसकी नाक और आँखें तो बिलकुल तुमसे मिलती हैं और माथा मुझसे।’’

‘‘हाँ, मुझको भी कुछ ऐसा ही मालूम होता है।’’

इसके बाद गजराज ने बच्चे को नर्स की गोद में दे दिया। उसने उठते हुए कहा, ‘‘अच्छा, अब मैं चलता हूँ। अब एक मास तक मैं दिल्ली में ही हूँ।’’

‘‘कुछ खर्चे के लिए दे जाइये न!’’

‘‘वह मैं भेज दूँगा अथवा कल स्वयं ही ले आऊँगा।’’

‘‘कुछ तो देते जाइए।’’

गजराज ने बात बदल दी। उसने खड़े-खड़े ही कह दिया, ‘‘अब तुम बच्चे की माँ हो गई हो। इस कारण मैं समझता हूँ कि यह मकान तुम्हारे लिए छोटा रहेगा।’’

‘‘तो कोई बड़ा मकान ले लीजिए।’’

‘‘एक कोठी का प्रबन्ध कर रहा हूँ।’’

‘‘कहाँ?’’

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