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दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642

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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...

: ६ :

अगले दिन चरणदास अपना बिस्तर और कपड़े उठा लाया। लक्ष्मी ने इनके रहने की व्यवस्था कर दी। चरणदास भोजन का पृथक् प्रबन्ध करने लगा तो गजराज ने कह दिया, ‘‘मेरा विचार है कि तुमको बच्चों को पढ़ाने का सौ रुपये मासिक दिया जाए।’’

‘‘सौ?’’ आश्चर्य में चरणदास ने कहा, ‘‘इतना तो मुझे स्कूल में छः घण्टे कार्य करने का भी नहीं मिलता।’’

‘‘स्कूल और घर पर पढ़ाने में अन्तर है न? यह तो ‘ओवर टाइम’ है, इसका पारिश्रमिक तो दुगुना-तिगुना होता ही है।’’

चरणदास जब इसका उत्तर विचारने लगा तो गजराज खिल-खिलाकर हँस पड़ा। चरणदास ने कहा, ‘‘जीजाजी, मुझको लज्जित न कीजिए। बहिन के घर का खाऊँगा तो न जाने कितने जन्मों में जाकर उससे उऋण हो सकूँगा।’’

‘‘चरण! तुम अपना चौका-चूल्हा पृथक् कर लो। किन्तु यह सौ रुपये तो तुम्हें लेने ही पड़ेंगे।’’

बात टल गई।

अब उस कोठी के सभी व्यक्ति–बच्चे और बूढ़े–प्रातःकाल चार बजे उठने लगे। सब स्नानादि से निवृत्त हो सन्ध्योपासना में सम्मिलित होते। छः बजे अल्पाहार कर सात बजे तक स्कूल जाने वाले स्कूल और काम पर जाने वाले अपने कार्य पर जाने लगे। मध्याह्न के समय स्कूल से बच्चे और चरणदास लौटते तो भोजन करने जा बैठते। इस समय तक गजराज भी भोजन के लिए आ जाता था।

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