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दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642

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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...


यमुना ड्राइंग-रूम में आई तो बिजली का स्विच ऑन कर रेडियोग्राम बजाने लगी। रिकार्ड बजते सुन पुनः सुमित्रा और सुभद्रा वहाँ इकट्ठी हो गईं और रेडियोग्राम की कैबिनेट के समीप खड़ी हो सुनने लगीं।

यमुना ने उनको डाँटा नहीं। न ही वहाँ खड़े होने से उसने उन्हें रोका। जब एक रिकार्ड बज चुका तो यमुना ने पूछा, ‘‘तुम्हारे घर में भी है ऐसा?’’

‘‘नहीं।’’ सुमित्रा ने सिर हिलाकर उत्तर दिया।

‘‘जानती हो क्यों नहीं है?’’

‘‘हमारे घर में नहीं है।’’

‘‘वह इसलिए कि तुम गरीब हो और हम अमीर हैं।’’

इतना तो सुमित्रा भी समझती थी कि उसकी बूआ के पास बहुत धन है। उसने उत्सुकता से पूछ लिया, ‘‘यह कितने रुपये का आता है?’’

‘‘नौ सौ का।’

‘‘नौ सौ का!’’ सुमित्रा ने विस्मय प्रकट करते हुए कहा, ‘‘तब तो तुम्हारे पापा बहुत अमीर हैं।’’

‘‘हाँ, और तुम हमसे छोटे हो।’’

‘‘नहीं यमुना, मैं तुमसे बड़ी हूँ। तुम कौन-सी कक्षा में पढ़ती हो?’’

‘‘क्या कहा?’’

‘‘तुम किस क्लास में पढ़ती हो?’’

‘‘मैं ‘सैवन्थ स्टैण्डर्ड’ में पढ़ती हूँ।’’

‘‘सातवीं कक्षा में? पर तुम्हारा सुलेख तो दूसरी कक्षा-जैसा है।’’

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