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दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642

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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...


यमुना ने समझा कि सुमित्रा के झूठ का भाण्डा फूट गया है। इस कारण ही वह अब उसके सम्मुख अपना सिर ऊँचा नहीं करती।

एक दिन सायःकाल सुमित्रा, सुभद्रा और कस्तूरीलाल ‘लॉन’ में गेंद-बल्ला खेल रहे थे। रबड़ की तो गेंद थी, टेनिस के रैकिट का बल्ला बनाया हुआ था। उन तीनों को खेलते देख यमुना भी वहाँ खलेने के लिए चली आई। जब वह आई तो सुमित्रा, जो बल्ला पकड़े खड़ी थी, यमुना से पूछने लगी, ‘‘तुम भी खेलोगी यमुना?’’

‘‘हाँ।’’

‘‘तो आओ।’’ इतना कह उसने बल्ला यमुना के हाथ में दे दिया। स्वयं वह कोठी की ओर चल पड़ी। कस्तूरी गेंद पकड़ रहा था और सुभद्रा गेंद दे रही थी। कस्तूरी ने कहा, ‘‘यमुना, तुम खेलो, मैं तो चलता हूँ।’’

‘‘बस खेल लिया?’’

यमुना ने क्रोध में बल्ले को भूमि पर फैंका और सुमित्रा के पीछे-पीछे चल पड़ी। सुमित्रा अभी बरामदे में ही पहुँची थी कि यमुना उसके सम्मुख जाकर खड़ी हो गई। उसने पूछा, ‘‘तुम चली क्यों आई हो?’’

‘‘मैं तुम्हारे साथ खेलना नहीं चाहती।’’

‘‘क्यों?’’

‘‘हम निर्धन हैं, निर्धन धनियों के साथ नहीं खेलते।’’

‘‘कौन कहता है?’’

‘‘मेरा मन कहता है।’’

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