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दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642

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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...


सोमनाथ ने अपनी पत्नी से पूछा, ‘‘कुछ अपने आभूषण इत्यादि हैं क्या?’’

‘‘अब तो यह कड़े ही रह गए हैं और वह भी पीतल के। विवाह के दिन पहनने के लिए दस आने में ‘डिब्बी बाज़ार’ से खरीदे थे।’’

‘‘कल हलवाई आदि माँगने के लिए आयेंगे तो क्या कहूँगा?’’

कह देना, अगले मास के आरम्भ में वेतन मिलने पर चुका दिया जायगा।’’

‘‘वे मानेंगे नहीं।’’

‘‘कह देखिए, मान जाएँगे।’’

उस युग में वस्तुएँ सस्ती थीं, आय कम थी, फिर भी सभी में सन्तोष की भावना विद्यमान थी। हलवाई सोमनाथ का आग्रह मान गये। अन्नादि वाले भी राज़ी हो गये। कन्या के विवाह में सहायता पुण्य-कार्य माना जाता था। सोमनाथ को यह ऋण उतारने में छः मास लग गये।

लक्ष्मी के भाई की आयु उस समय आठ वर्ष की थी। लक्ष्मी के विवाह पर धड़ाधड़ रुपया व्यय होने का उसे स्मरण था। परन्तु यह भावना कि विवाह पर बहिन को बहुत-कुछ देना चाहिए, उसके मन में भी विद्यमान थी। यह जानकर कि उसके पिता ने सब-कुछ लक्ष्मी के विवाह पर व्यय कर दिया है, उसको मन-ही-मन सन्तोष और प्रसन्नता हुई थी।

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