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दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642

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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...


यमुना की समझ में कुछ नहीं आया। वास्तव में वह अपने मन की पसन्द के अनुसार ही चलती थी और बुद्धि से यह विचार करने का यत्न नहीं करती थी कि उसको अमुक कार्य क्यों करना चाहिए और क्यों नहीं।

सुभद्रा समीप खड़ी पिता-पुत्री के इस वार्तालाप को सुन रही थी। इस पर भी अल्पायु होने के कारण वह बात का तथ्य नहीं समझ पा रही थी। गजराज ने उसको आवाज़ दी, ‘‘सुभद्रा।’’

‘‘हाँ डैडी!’’ वह गजराज को डैडी कहने लगी थी।

‘‘तुम अपनी माताजी के साथ क्यों नहीं गईं?’’

‘‘मैं उस समय सो रही थी।’’

‘‘तुम क्या माताजी के साथ जाना नहीं चाहतीं?’’

‘‘मैं तो जाना चाहती हूँ। माताजी तो बहुत अच्छी होती हैं।’’

‘‘क्यों अच्छी होती हैं माताजी?’’

‘‘वे खाने को देती हैं, रात को अपने साथ सुलाती हैं, सुबह स्नान कराती हैं, कपड़े पहनाती हैं...।’’

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