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दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642

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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...


‘‘इतना कहते-कहते सुमित्रा का मुख लाल हो गया। कस्तूरी ने कह दिया, ‘‘तुमने सब मामला बिगाड़ दिया है।’’

‘‘अपने विचार से तो मैंने उचित ही उत्तर दिया था।’’

‘‘उचित था तो मुझे भी वह उचित बात बता जातीं। मैंने तो उनसे यही कहा है कि मैं प्रातःकाल से यहीं पर हूँ। मेरे सिर में दर्द हो रहा है।’’

‘‘वाह! सिर दर्द कहाँ हो रहा है आपको! सिर दर्द तो मेरे हो रहा है, जो मैं कॉलेज नहीं गई।’’

कस्तूरी इस बहानेबाजी का भण्डाफोड़ हुआ सुन हँसता हुआ, अपनी साइकल निकालकर कनॉट प्लेस की ओर चल दिया।

गजराज को एक का उत्तर दूसरे के विपरीत सुन आश्चर्य हुआ और चिन्ता भी लग गई। वह समझा गया कि चरणदास के घर में कुछ भारी गड़बड़ है। कुछ बात है जो प्रत्येक व्यक्ति छिपाना चाहता है। इसी से झूठ बोल रहा है। क्या बात है, जो वे लोग छिपाना चाहते हैं? वह अपनी कोठी में बैठा इसी बात पर विचार कर रहा था। वह समझ नहीं पा रहा था कि चरणदास क्यों तीन दिन से घर नहीं गया और आज तो न वह दफ्तर में है, न घर पर ही।

गजराज समझ रहा था कि कस्तूरीलाल कम्पनी के ऑफिस में जायगा और वहाँ मुझको न पाकर फोन करेगा। इस कारण वह उसके फोन की प्रतीक्षा करने लगा।

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