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दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642

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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...

: ६ :

चरणदास अभी इस विषय में विचार ही कर रहा था कि सुभद्रा वहाँ पर आ गई। वह और यमुना बाज़ार से कुछ खरीदने के लिए गई हुई थीं। वे अपने लिए कुछ कपड़े और श्रृंगार-प्रसाधन खरीद कर लाई थीं। दोनों एक-एक बड़ा सूटकेस, जिसमें यात्रा की सब वस्तुएँ समा जायँ, और एक-एक हाथ का पर्स भी लाई थीं।

सुभद्रा ने आते ही चरणदास ने कहा, ‘‘पिताजी, हमको साथ ही घर ले चलियेगा।’’

‘‘क्यों?’’

‘‘हम माँ से मिलेंगी, जिससे परसों हम यहाँ से फ्रण्टियर से विदा हो सकें।’’

‘‘अच्छी बात है। तैयार हो जाओ, मैं घर ही जा रहा हूँ।’’

‘‘हम तैयार हैं।’’ दोनों बाहर जाकर पहले हीं मोटर में जा बैठीं। उनको उस ओर जाते देख गजराज ने चरणदास से कहा, ‘‘देखो चरण, अब तुम जाओ। तुमने बहुत झगड़े खड़े कर लिये हैं, वे शीघ्र ही दूर करने होंगे। अन्यथा कम्पनी डूब जाएगी और हम कहीं फँस गए तो जीवन-भर के लिए बदनाम हो जायँगे।’’

‘‘मैं समझता हूँ कि कम्पनी में किसी प्रकार की खराबी नहीं हुई है।’’

‘‘यह जाँच का विषय बन गया है। फिर कस्तूरी के विषय में भी जाँच की आवश्यकता है।’’

भविष्य में इस विषय में इस सब सन्देह की बात चरणदास की समझ में नहीं आई। वह चुपचाप मोटर में बैठ घर जा पहुँचा।

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