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1857 का संग्राम

वि. स. वालिंबे

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :74
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8316

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संक्षिप्त और सरल भाषा में 1857 के संग्राम का वर्णन

तात्या के पास अब बहुत कम सिपाही बच गये थे। उसके पास कोई दौलत नहीं बची थी, जिसके जोर पर वह सिपाहियों की भरती कर सके। इसके बावजूद बहादुर तात्या टोपे अंग्रेज फौज पर हमले करता रहा। तात्या टोपे कंपनी सरकार के हाथ नहीं लग रहा था। अंग्रेजों ने हमेशा की तरह तात्या टोपे को पकड़नेवाले को इनाम घोषित किया। इस बागी को पकड़ने की सूचना सभी गांवों में फैला दी गयी।मान सिंह ग्वालियर सल्तनत के नरवर रियासत का जागीरदार था। वह उन दिनों सिंधिया के खिलाफ हरकतें कर रहा था। इसलिए सिंधिया ने उसकी जागीर अपने कब्जे में कर ली थी। तात्या टोपे की भेंट मान सिंह से हुई। तात्या को मालूम हुआ था कि मान सिंह और सिंधिया के बीच दरार पड़ गयी है। राजपुताना घूमते समय तात्या को एक दिन मान सिंह का बुलावा आया— ‘‘कृपया भेंट करें। कुछ जरूरी बात करनी हैं।’’ सिंधिया पर खफा हुआ जागीरदार तात्या की सहायता करना चाहता था, यह सुनकर तात्या को आश्चर्य हुआ। लेकिन इन हालात में तात्या लाचार था। वह किसी भी छोटी-सी मदद की ओर ताक रहा था। इसलिए तात्या नरवर पहुंच गया।

मान सिंह ने तात्या का स्वागत गर्मजोशी के साथ किया। दोनों में विचार-विमर्श हुआ। मान सिंह ने तात्या को खबर दी कि रोहिलखंड का बागी फीरोजशाह चढ़ाई की तैयारी कर रहा है। यह सुनकर तात्या को खुशी हुई। इसका मतलब सब कुछ खत्म नहीं हुआ था। तात्या मान सिंह की बातें ध्यान से सुन रहा था।

रात होने पर मान सिंह ने तात्या से कहा, ‘‘अभी बहुत कुछ तय करना है। हम सुबह बातें करेंगे।’’ तात्या की आंखें थकान से बोझिल हो गयी थीं। उसे गहरी नींद लगी। बहुत दिनों बात एक अच्छी खबर सुनने को मिली थी। गहरी नींद के बीच अचानक तात्या को किसी ने झकझोरा। अब भी नींद खुली नहीं थी। उसे मालूम नहीं हुआ कि वह सपना देख रहा है या हकीकत। उसके सामने आठ-दस हथियारबंद अंग्रेज सिपाही खड़े थे। जल्द ही उसे सभी बातों का खुलासा हुआ। तात्या मान सिंह को ढूंढ़ रहा था। लेकिन नरवर का नरेश मान सिंह उसे धोखा देकर भाग निकला था। तात्या को मुंह दिखाने की हिम्मत मान सिंह में अब कहां बची थी?जिस तात्या को कंपनी सरकार साल भर से ढूंढ़ती रही थी, आखिरकार वह एक ऐसे देसी नरेश के धोखेबाजी और विश्वासघात की वजह से पकड़ा गया। मान सिंह की लालच ने तात्या को अंग्रेजों की कैद में डाल दिया।

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