लोगों की राय

नाटक-एकाँकी >> चन्द्रहार (नाटक)

चन्द्रहार (नाटक)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :222
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8394

Like this Hindi book 9 पाठकों को प्रिय

336 पाठक हैं

‘चन्द्रहार’ हिन्दी के अमर कथाकार प्रेमचन्द के सुप्रसिद्ध उपन्यास ‘ग़बन’ का ‘नाट्य–रूपांतर’ है

दूसरा दृश्य

(एक साधारण गृहस्थ का मर्दाना कमरा। एक ओर तख्त पड़ा हुआ है। उस पर कालीन बिछा है और कालीन पर एक डैक्स। कुछ कागज– पत्र इधर उधर बिखरे हुए हैं। पास में दो– तीन मूढ़े पड़े हैं। एक कोने में एक चारपाई है। उस पर बिस्तर बिछा है। चादर न विशेष मैली है न विशेष चिट्टी। इस समय यहाँ एक अधेड़ सज्जन महाशय दयानाथ बैठे हैं। जवानी में सुंदर रहे होंगे; देखने में सज्जन भी लगते हैं, पर इस समय विशेष चिंतातुर जान पड़ते हैं। मुँह पर हवाइयाँ उड़ रही हैं। दो तीन क्षण बाद उनकी पत्नी जागेश्वरी वहां प्रवेश करती है।)

जागेश्वरी– भोजन कब से बना ठंडा हो रहा है। खाओगे नहीं?

दयानाथ– नहीं। मुझे भूख नहीं है।

जागेश्वरी– भूख क्यों नहीं है, रात भी तो कुछ नहीं खाया था। इस तरह दाना– पानी छोड़ देने से महाजन के रुपये थोड़े ही अदा हो जायेंगे?

दयानाथ– अदा तो करने ही हैं। वह कल आयेगा तो क्या जवाब दूँगा। मैं तो विवाह करके बुरा फँस गया। बहू कुछ गहने लौटा तो देगी?

जागेश्वरी– बहू का हाल तो सुन चुके; फिर भी उससे ऐसी आशा रखते हो? उसकी टेक है कि जब तक चन्द्रहार न बन जायगा, कोई गहना ही न पहनूँगी। बहुएँ बहुत देखीं, पर ऐसी बहू न देखी थी। फिर कितना बुरा मालूम होता है कि कल आयी बहू, उससे गहने छीन लिये जाएँ।

दयानाथ– (चिढ़ कर) तुम तो जले पर नमक छिड़कती हो। बुरा मालूम होता है, तो लाओ, एक हजार निकाल कर दे दो, महाजन को दे आऊँ; देती हो? बुरा मुझे खुद मालूम होता है; लेकिन उपाय क्या है?

जागेश्वरी– बेटे का ब्याह किया है कि ठठ्ठा है? शादी– ब्याह में सभी कर्ज लेते हैं, तुमने कोई नयी बात नहीं की। खाने– पहनने के लिए कौन कर्ज लेता है? धर्मात्मा बनने का कुछ फल मिलना चाहिए या नहीं? तुम्हारे ही दर्जे पर सत्यदेव हैं; पक्का मकान खड़ा कर दिया, जमींदारी खरीद ली, बेटी के ब्याह में कुछ नहीं तो पाँच हजार खर्च किये ही होंगे।

दयानाथ– जभी दोनों लड़के भी तो चल दिये!

जागेश्वरी– मरना– जीना तो संसार की गति है। लेते हैं, वे भी मरते हैं, नहीं लेते, वे भी मरते हैं। अगर तुम चाहो, तो छह महीने में सब रुपये चुका सकते हो।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai