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ग़बन (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :544
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8444

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ग़बन का मूल विषय है महिलाओं का पति के जीवन पर प्रभाव


मगर जालपा की अभिलाषाएँ अभी एक भी पूरी न हुईं। नागपंचमी के दिन मुहल्ले की कई युवतियाँ जालपा के साथ कजली खेलने आयीं; मगर जालपा अपने कमरे के बाहर नहीं निकली। भादों में जन्माष्टमी का उत्सव आया। पड़ोस में ही एक सेठ जी रहते थे, उनके यहाँ बड़ी धूमधाम से उत्सव मनाया जाता था। वहाँ से साँस और बहू को बुलावा आया। जागेश्वरी गयी, जालपा ने जाने से इन्कार किया। इन तीन महीनों में उसने रमा से एक बार भी आभूषण की चर्चा न की; पर उसका एकान्त-प्रेम, उसके आचरण से उत्तेजक था। इससे ज्यादा उत्तेजक वह पुराना सूची पत्र था, जो एक दिन रमा कहीं से उठा लाया था। इसमें भाँति-भाँति के सुन्दर आभूषणों के नमूने बने हुए थे। उनके मूल्य भी लिखे हुए थे। जालपा एकान्त में इस सूची पत्र को बड़े ध्यान से देखा करती। रमा को देखते ही वह सूची पत्र छिपा लेती थी। इस हार्दिक कामना को प्रकट करके वह अपनी हँसी न उड़वाना चाहती थी।

रमा आधी रात के बाद लौटा, तो देखा, जालपा चारपाई पर पड़ी है। हँसकर बोला–बड़ा अच्छा गाना हो रहा था। तुम नहीं गयीं; बड़ी गलती की।

जालपा ने मुँह फेर लिया, कोई उत्तर न दिया।
रमा ने फिर कहा–यहाँ अकेले पड़े-पड़े तुम्हारा जी घबराता रहा होगा।

जालपा ने तीव्र स्वर में कहा–तुम कहते हो, मैंने गलती की मैं समझती हूँ, मैंने अच्छा किया। वहाँ किसके मुँह में कालिख लगती?

जालपा ताना तो न देना चाहती थी; पर रमा की इन बातों ने उसे उत्तेजित कर दिया। रोष का एक कारण यह भी था कि उसे अकेली छोड़कर सारा घर उत्सव देखने चला गया। अगर उन लोगों के हृदय होता, तो क्या वहाँ जाने से इनकार न कर देते?

रमा ने लज्जित होकर कहा–कालिख लगने की तो कोई बात न थी, सभी जानते हैं कि चोरी हो गयी है, और इस जमाने में दो-चार हजार के गहने बनवा लेना, मुँह का कौर नहीं है।

चोर का शब्द ज़बान पर लाते हुए, रमा का हृदय धड़क उठा। जालपा पति की ओर तीव्र दृष्टि से देखकर रह गयी। और कुछ बोलने से बात बढ़ जाने का भय था; पर रमा को उसकी दृष्टि पर ऐसा भासित हुआ, मानो उसे चोरी का रहस्य मालूम है और वह केवल संकोच के कारण उसे खोलकर नहीं कह रही है। उसे उस स्वप्न की बात याद आयी, जो जालपा ने चोरी की रात देखा था। वह दृष्टि बाण के समान उसके हृदय को छेदने लगी; उसने सोचा, शायद मुझे भ्रम हुआ। इस दृष्टि से रोष के सिवा और कोई भाव नहीं है; मगर यह कुछ बोलती क्यों नहीं? चुप क्यों हो गयी? उनका चुप हो जाना ही गज़ब था। अपने मन के संशय मिटाने और जालपा के मन की थाह लेने के लिए रमा ने मानों डुब्बी मारी–यह कौन जानता था कि डोली से उतरते ही यह विपत्ती तुम्हारा स्वागत करेगी।

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