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गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :255
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8446

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गल्प-लेखन-कला की विशद रूप से व्याख्या करना हमारा तात्पर्य नहीं। संक्षिप्त रूप से गल्प एक कविता है


मैं बोली–पहले की जमाने की औरतों का किस्सा नलका बुआ बता ले जाती थी, किस समय स्त्रियाँ चरखा कातती थीं, किस समय गोबर पाथती थीं, किस समय खाना पकाती थीं, किस समय क्या करती थीं, दिन भर की दिनचर्या वह बताती थीं।

भैया बोले–अरे पागल, कोई कहानी तो रहती नहीं थी।

मैं बोली– मेरे भैया, कहानी न होते हुए भी कहानी से ज्यादा मजा आता था। बीती हुई बातें कहानी से भी ज्यादा मनोरंजक हो जाती हैं।

भैया बोले–अरे भाई, वजह यह है, न पहली-सी आदमी की उम्र रह जाय, न पहली–सी कहानी। क्योंकि जो उम्र बीत गई, वह तो वापिस नहीं आती। उसी की कहानी सुन करके इन्सान का मनोरंजन होता है।

मैं बोली –भैया, वही समय फिर आ जाय,! जबरदस्ती सब कुछ रहते हुए वह समझ तो नहीं रहेगी, और न वह उत्साह रहेगा। जब ये दो चींजें नहीं हैं, तो कैसे वह समय आ सकता है!

वह नौकर धीरे से आकर–फिर भी वहीं आकर–हम लोगों की बातें सुन रहा था और यही सुनते-सुनते उसकी आँखों से आँसू गिरने लगे। मैं बोली–चन्दर भैया, तू क्यों रोने लगा?

बोला–कुछ नहीं, बिटिया, सोचता हूँ कि इस जिन्दगी में मेरी अँधियारी रात है। जैसे आप लोग बैठे अपने बचपन की कहानी कह रहे हैं, मेरे तो तीन पन बीत चुके, चौथा है। उन्हीं की याद करते-करते सोचता हूँ, कि अब जीवन है क्या! हरियाली तो कभी आने की नहीं। सुनसान निर्जन। यही जीवन का लेखा हो गया है। अब तो मैं मालिक से यही प्रार्थना करता हूँ; कि जब तक जिन्दा रहूँ तब तक इन्हीं के दुआरे पड़ा रहूँ। जो कुछ मुझसे सेवा हो सके, करता रहूँ।

यही कहता हुआ उसने भैया के पैरों पर गिरना चाहा। भैया खुद रो पड़े।

बूढ़ा बोला–सरकार आप काहे का रोवत हैं?

भैया बोले–अरे भाई, वही अँधियारी रातें हम लोगों के लिए भी तो तैयार हो रही हैं।

महेशा का पति सुनकर, बोला–सच है बूढ़े का कहना। जो दुनिया में जन्म लेता है, वह...एक दिन सबके लिए वही अँधियारी रात है।

यही कहते-कहते महेशा और महेशा के पति दोनों रो पड़े। बोले–जो जन्म लेता है, एक दिन अँधियारा उसके लिए जरूर आता है।
( सच्ची घटना के आधार पर।)

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