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गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :255
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8446

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गल्प-लेखन-कला की विशद रूप से व्याख्या करना हमारा तात्पर्य नहीं। संक्षिप्त रूप से गल्प एक कविता है


‘मित्र के काम के लिए यह सब करना पड़ा, पर कोई फल न हुआ। इसके लिए मुझे भी दु:ख है।’

‘आपके मित्र का ऐसा क्या काम था, जिसके लिए तीन महीने इधर-उधर घूमना पड़ा और फिर भी वह न हो सका?’

‘उस काम का जिक्र करने से भी सरला मुझे दु:ख होता है। इसलिए, सुनकर तुम भी दु:खी हुए बिना न रह सकोगी। भोजन की बात तो कहो, क्या देर है? भूख लग रही है?’

‘बिलकुल तैयार है। मैं जाकर नौकर से आसन बिछाने के लिए कहती हूँ। आप, मामाजी और मित्र को साथ लेकर आइए!

यह कहकर सरला बड़ी फुरती से चली गई। उसने बड़े करीने से भोजन चुनना शुरू किया। तीन थाली में भोजन चुना गया। जिन चीजों को गरम रखने की जरूरत थी, वे अभी तक गरम पानी में रक्खी हुई थीं। भोजन के साथ नहीं परोसी गई थीं। थोड़ी देर में डाक्टर साहब, सतीश और रामसुन्दर के साथ आ पहुँचे। भोजन शुरू हुआ, सरला ने बड़ी होशियारी से परोसना आरम्भ किया। भोजन करते समय इधर-उधर की बातें होने लगीं।

सतीश–मामाजी, स्टेशनों पर बहुत बुरा भोजन मिलता है। भाई रामसुन्दर, बलिया के स्टेशन की पूड़ियाँ याद हैं?

रामसुन्दर–और लखनऊ के स्टेशन की भूलने की नहीं।

डाक्टर साहब–ऐसी मौकों पर तो फल खा लेना चाहिये।

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