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गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :255
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8446

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गल्प-लेखन-कला की विशद रूप से व्याख्या करना हमारा तात्पर्य नहीं। संक्षिप्त रूप से गल्प एक कविता है


सतीश–मामाजी, बड़े स्टेशनों को छोड़कर और सब स्टेशनों पर फल नहीं मिलते।

बातें भी जारी थीं, खाना भी जारी था। सरला का परोसना भी जारी था। रामसुन्दर यद्यपि बातों में योग दे रहा था; पर उसका ध्यान सरला ही की ओर था। वह बार-बार उसी को देखता था। उसकी इस हरकत से सतीश को थोड़ी-सी भतर जलन पैदा हुई। मानिनी सरला ने भी मन में कुछ बुरा माना। भोजन समाप्त हुआ। रामसुन्दर और सतीश ने एक कण्ठ से कहा– तीन महीने में आज ही तृप्त होकर भोजन किया है।

चलते समय रामसुन्दर ने मुड़ कर एक बार फिर सरला को देखा। अब की बार तो सतीश जल ही गया। दोनों मित्र बाहर आये। सतीश को गुस्सा आ ही रहा था कि रामसुन्दर को इस बेहूदा हरकत पर लानत-मलामत दे कि इतने ही में उसने पूछा–

‘भाई, यह लड़की कौन है? जब मैं पहले तुम्हारे यहाँ आया था, तब तो यहाँ यह न थी?’

मानों सतीश की प्रदीप्त क्रोधाग्नि पर मिट्टी का तेल पड़ा। उसने बड़ी घृणा के साथ कहा–

‘रामसुन्दर, तुम बड़े नीच हो। जब तक खाते रहे, तब तक उसकी ओर घूरते रहे। जब खाकर बाहर आये, तब फिर-फिरकर उसकी ओर देखा किये। अब तुम्हारी नीचता बढ़ गई कि मुझसे भी उसी प्रकार से प्रश्न करने लगे। तुम्हारी नैतिक अवस्था पर बड़ा दु:ख है।’

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