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गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :255
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8446

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गल्प-लेखन-कला की विशद रूप से व्याख्या करना हमारा तात्पर्य नहीं। संक्षिप्त रूप से गल्प एक कविता है

प्रायश्चित

भगवतीचरण वर्मा

(श्री भगवतीचरण वर्मा में कहानियाँ लिखने की विशेष प्रतिभा है। आपकी कहानियाँ बड़ी ही छोटी एवं मार्मिक हैं। चरित्र-चित्रण बड़ा ही सच्चा होता है और मनोविज्ञान का आपका अध्ययन अच्छा है। भाषा में आपके जान है और वह बड़ी स्वाभाविक गति से चलती है। आपकी कहानियों के सभी गुण प्रस्तुत कहानी में पाठकों को मिलेंगे। वर्माजी केवल सफल कहानी लेखक ही नहीं वरन एक श्रेष्ठ और उपन्यास-लेखक भी हैं।
आपकी कविता के संग्रह ‘प्रेम-संगीत’ और ‘मानव’, उपन्यास ‘तीन वर्ष’ और ’चित्रलेखा’, कहानियों का संग्रह इन्स्टालमेंट’ विशेष प्रसिद्ध हैं।)

अगर कबरी बिल्ली घर भर में किसी से प्रेम करती थी, तो रामू की बहू से और अगर रामू की बहू घर भर में किसी से घृणा करती थी, तो कबरी बिल्ली से। रामू की बहू दो महीने हुआ मायके से प्रथम बार ससुराल आई थी, पति की प्यारी और सास की दुलारी, चौदह वर्ष की बालिका। भंडार-घर की चाभी उसकी करधनी में लटकने लगी, नौकरों पर उसका हुक्म चलने लगा, और रामू की बहू घर में सब कुछ, सासजी ने माला लिया और पूजा–पाठ में मन लगाया।

लेकिन ठहरी चौदह वर्ष की बालिका, कभी भंडार-घर खुला है, तो कभी भडार-घर में बैठे-बैठे सो गई। कबरी बिल्ली को मौका मिला, घी-दूध पर अब वह जुट गई। रामू की बहू की जान आफत में और कबरी बिल्ली के छक्के-पंजे। रामू की बहू हाँडी में घी रखते-रखते ऊँघ गई और बचा हुआ, घी कबरी के पेट में। रामू की बहू ढककर मिसरानी को जिन्स देने गई और दूध नदारत। अगर बात यह यहीं तक रह जाती तो भी बुरा न था, कबरी रामू की बहू के कुछ ऐसा परच गई थी कि रामू की बहू के लिए खाना–पीना दुश्वार। रामू की बहू के कमरे में भरी कटोरी पहुँची और रामू जब आये तब कटोरी साफ चटी हुई। बाजार से बालाई आई और तब तक रामू की बहू ने पान लगाया, बालाई गायब। रामू की बहू ने तै कर लिया कि या तो वही घर में रहेगी या फिर कबरी बिल्ली ही। मोरचाबन्दी हो गई और दोनों सतर्क। बिल्ली फँसाने का कटघरा आया, उसमें दूध, बालाई, चूहे, और भी बिल्ली को स्वादिष्ट लगने वाले विविध प्रकार के व्यंजन रखे गये, लेकिन बिल्ली ने उधर निगाह तक न डाली। इधर कबरी ने सरगर्मी दिखलाई। अभी तक तो वह रामू की बहू से डरती थी, पर अब वह साथ लग गई, लेकिन इतने फासिले पर कि रामू की बहू उस पर हाथ न लगा सके।

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