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गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :255
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8446

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गल्प-लेखन-कला की विशद रूप से व्याख्या करना हमारा तात्पर्य नहीं। संक्षिप्त रूप से गल्प एक कविता है


महरी बोली–अरे राम, बिल्ली तो मर गई! माँजी बिल्ली की हत्या बहू से हो गई, यह तो बुरा हुआ।

मिसरानी बोली–माँजी, बिल्ली की हत्या और आदमी की हत्या बराबर है। हम तो रसोई न बनावेंगी, जब तक बहू के सिर हत्या रहेगी।

सासजी बोली–हाँ ठीक तो कहती हो, अब जब तक बहू के सिर हत्या न उतर जाय तब तक न कोई पानी पी सकता है, न खाना खा सकता है। बहू, यह क्या कर डाला!

महरी ने कहा–फिर क्या हो, कहो तो पण्डितजी को बुलाय लाई।

सास की जान में जान आई–अरे हाँ, जल्दी दौड़ के पण्डितजी को बुला ला।

बिल्ली की हत्या की खबर बिजली की तरह पड़ोस में फैल गई। पड़ोस की औरतों का रामू के घर में ताँता बँध गया। चारों तरफ से प्रश्नों की बौछार और रामू की बहू सिर झुकाये बैठी।

पण्डितजी परमसुख को जब यह खबर मिली उस समय वे पूजा कर रहे थे।

खबर पाते ही वे उठ पड़े–पण्डिताइन से मुसकराते हुए बोले-भोजन न बनाना। लाला घासीराम की पतोहू ने बिल्ली मार डाली। प्रायश्चित होगा, पकवानों पर हाथ लगेगा।

पण्डित परमसुख चौबे छोटे-से, मोटे-से आदमी थे। लम्बाई चार फीट दस इंच, और तोंद का घेरा अट्ठावन इंच। चेहरा गोल-मटोल, मूँछ बड़ी-बड़ी, रंग गोरा, चोटी कमर तक पहुँचती हुई।

कहा जाता है कि मथुरा में जब पंसेरी खुराक वाले पण्डितों को ढूँढ़ा जाता था, पण्डित परमसुखजी को उस लिस्ट में प्रथम स्थान दिया जाता था।

पण्डित परमसुख पहुँचे, और कोरम पूरा हुआ। पंचाइत बैठी–सासजी, मिसरानी, किसनू की माँ, छन्नू की दादी और पण्डित परमसुख ! बाकी स्त्रियाँ बहू से सहानूभूति प्रकट कर रही थीं।

किसनू की माँ ने कहा– पण्डितजी, बिल्ली की हत्या करने से कौन सा नरक मिलता है?

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