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गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :255
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8446

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गल्प-लेखन-कला की विशद रूप से व्याख्या करना हमारा तात्पर्य नहीं। संक्षिप्त रूप से गल्प एक कविता है


पण्डित परमसुख ने पत्रा देखते हुए कहा–बिल्ली की हत्या अकेले से तो नरक का नाम नहीं बतलाया जा सकता, वह महूरत भी मालूम हो जब बिल्ली की हत्या हुई तब नरक का पता लग सकता है।

‘यही कोई सात बजे सुबह।’ मिसरानीजी ने कहा।

पण्डित परमसुख ने पन्ने-के-पन्ने उलटे, अक्षरों पर उँगलियाँ चलाइँ, मत्थे पर हाथ लगाया और कुछ सोचा। चेहरे पर धुँधलापन आया। माथे पर बल पड़े, नाक कुछ सिकुड़ी और स्वर गम्भीर हो गया, हरे कृष्ण! हरे कृष्ण! बड़ा बुरा हुआ, प्रातः काल ब्रहा-मुहूर्त में बिल्ली की हत्या! घोर कुम्भीपाक नरक का विधान है! रामू की माँ, यह तो बड़ा बुरा हुआ।

रामू की माँ की आँखों में आँसू आ गये–तो फिर पण्डितजी, अब क्या होगा, आप ही बतलायें?

पण्डित परमसुख मुसकराये–रामू की माँ चिन्ता की कौन–सी बात है, हम पुरोहित फिर कौन दिन के लिए हैं? शास्त्रों में प्रायश्चित का विधान है सो प्रायश्चित से सब कुछ ठीक हो जायगा।

रामू की माँ ने कहा – पण्डितजी, उसी लिए तो आपको बुलवाया था, अब आगे बतलाओ कि क्या किया जाय?

किया क्या जाय-यही एक सोने की बिल्ली बनवाकर बहू से दान करवा दी जाय– जब तक बिल्ली न दे दी जायगी तब तक तो घर अपवित्र रहेगा, बिल्ली दान देने के बाद एक्कीस दिन का पाठ हो जाय।

छन्नू की दादी–हाँ और क्या, पण्डितजी तो ठीक कहते हैं, बिल्ली अभी दान दे दी जाय और पाठ फिर हो जाय।

रामू की माँ ने कहा–तो पण्डितजी कितने तोले की बिल्ली बनवाई जाय पण्डित परमसुख मुसकराये, अपनी तोंद पर हाथ फेरते हुए उन्होंने कहा–बिल्ली कितने तोले की बनवाई जाय? अरे रामू की माँ, शास्त्रों में तो लिखा है कि बिल्ली के वजन भर सोने की बिल्ली बनवाई जाय। लेकिन अब कलियुग आ गया है, धर्म-कर्म का नाश हो गया है, श्रद्धा नहीं रही। सो रामू की माँ बिल्ली के तौल भर की बिल्ली तो क्या बनेगी, क्योंकि बिल्ली–एक्कीस सेर से कम क्या होगी, कम–से–कम एक्कीस तोले की बिल्ली बनवा के दान करवा दो, और आगे तो अपनी-अपनी श्रद्धा!

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