लोगों की राय

कहानी संग्रह >> गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह)

गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :255
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8446

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

264 पाठक हैं

गल्प-लेखन-कला की विशद रूप से व्याख्या करना हमारा तात्पर्य नहीं। संक्षिप्त रूप से गल्प एक कविता है


रामू की माँ ने आँखें फाड़कर पण्डित परमसुख को देखा अरे बाप रे! एक्कीस तोला सोना! पण्डितजी यह तो बहुत है, तोला भर की बिल्ली से काम नहीं निकलेगा?

पण्डित परमसुख हँस पड़े–रामू की माँ! एक तोला सोने की बिल्ली अरे रुपये का लोभ बहू से बढ़ गया? बहू के सिर बड़ा पाप है इसमें इतना लोभ ठीक नहीं?

मोल–तोल शुरू हुआ और मामला ग्यारह तोले की बिल्ली पर ठीक हो गया।

इसके बाद पूजा पाठ की बात आई। पण्डित परमसुख ने कहा–उसमें क्या मुश्किल है, हम लोग किस दिन के लिए हैं। रामू की माँ, मैं पाठ कर दिया करूँगा, पूजा की सामग्री आप हमारे घर भिजवा देना।

‘पूजा का सामान कितना लगेगा?’

‘अरे कम-से-कम सामान में हम पूजा कर देंगे, दान के लिए करीब दस मन गेहूँ, एक मन चावल, एक मन दाल, एक मन–भर तिल, पाँच मन जौं और पाँच मन चना, चार पसेरी घी, और मन-भर नमक भी लगेगा। बस इतने से काम चल जायगा।’

‘अरे बाप रे! इतना सामान, पण्डितजी इसमें तो सौ –डेढ़-सौ रुपया खर्च हो जायगा।’– रामू की माँ ने रूआँसी होकर कहा।

‘फिर इससे कम में तो काम न चलेगा। बिल्ली की हत्या कितना बड़ा पाप है रामू की माँ! खर्च को देखते वक्त पहिले बहू के पाप को तो देख लो? यह तो प्रायश्चित है, कोई हँसी-खेल थोड़े ही है–और जैसी जिसकी मरजादा प्रायश्चित में उसे वैसा खर्च भी करना पड़ता है। आप लोग कोई ऐसे-वैसे थोड़े हैं, अरे सौ–डेढ़-सौ रुपया आप लोगों के हाथ का मैल है।’

पण्डित परमसुख की बात से पंच प्रभावित हुए, किसनू की माँ ने कहा–पण्डितजी ठीक तो कहते हैं, बिल्ली की हत्या कोई ऐसा–वैसा पाप तो है नहीं बड़े पाप के लिए बड़ा खर्च भी चाहिये।

छन्नू की दादी ने कहा–और नहीं तो क्या, दान–पुन्न से ही पाप कटते हैं। दान–पुन्न में किफायत ठीक नहीं।

मिसरानी ने कहा–और फिर माँ जी, आप लोग बड़े आदमी ठहरे। इतना खर्च कौन आप लोगों को अखरेगा।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book