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गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :255
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8446

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गल्प-लेखन-कला की विशद रूप से व्याख्या करना हमारा तात्पर्य नहीं। संक्षिप्त रूप से गल्प एक कविता है


इस प्रकार अनेक कठिन नियमों के आवरण में वे अपने को छिपाकर रखने लगे।

बैरिस्टर दीक्षित अपने साथ इतनी सख्ती करने पर भी मानसिक समय न रख पाते। हर समय मानसिक भावनाओं के साथ उनको घोर युद्ध करना पड़ता। दिन भर किसी प्रकार विभिन्न कार्यों में चित को उलझाये रखते, रात में गीता पाठ के साथ निद्रादेवी का आह्वान करते, फिर भी स्वप्न में अतीतकाल के हास विलास के दृश्य अपनी छाया डाल ही जाते।

श्यामाचरण वकील के यहाँ पार्टी है। कैलाशबिहारी आगा की स्त्री रागिणी आज कैसी सज-धजकर आई है। रागिणी के रूप की बराबरी करनेवाली फैशनेबिल स्त्री जगत में दूसरी नहीं है। धानी साड़ी मुख पर कैसी खिल रही है।...

ऐसे स्वप्न उनके चित्त को उद्विग्न कर जाते।

बैरिस्टर साहब आफिस में कानून का अध्ययन कर रहे हैं, और बाहर बराण्डे में कोई नया मुवक्किल मुहर्रिर से गुक्तगू करता है, तो बैरिस्टर साहब की चितेरी कल्पना सब–कुछ भुलाकर स्त्री का चित्र उनके सम्मुख खींचती। कोई सफेद साड़ी पहने विधवा होगी। पति की सम्पति पर किसी ने अधिकार कर लिया होगा और अब रोटी देना भी अस्वीकार करता होगा। लाचार मुकदमे की बात सोचकर आई है। ध्वनि से भी स्त्री प्रतीत होती है, संकोच से धीरे-धीरे बोल रही है।

मुहर्रिर के द्वारा मशविरा तो दे दूँगा, किन्तु केस अपने हाथ में नहीं लूँगा। उसी समय मुहर्रिर कमरे में आता बैरिस्टर साहब की निमग्नता में बाधा पड़ती, वे कुछ कम्पित हृदय से कल्पनानुसार सुनने की प्रतीक्षा करते। मुहर्रिर कहता–साहब, छदम्मीलाल नामक एक मुवक्किल आया है।

लज्जा और ग्लानि से चित्त चंचल हो उठता। वे सोचते–क्या है? पहले तो मेरी मानसिक स्थिति ऐसी दुर्बल नहीं थी। कुप्रवृत्तियों के पराजित करने के साधन उल्टे मुझे ही पराजित कर रहे हैं और मानसिक उन्नति मार्ग से विमुख करके पतन के मार्ग की ओर आकृष्ट करते हैं। क्या उपाय करूँ भगवान!

पुत्र-पुत्रियों के कर्तव्य से निवृत्त होकर बैरिस्टर दीक्षित ने संन्यास ले लिया। हिमालय की पहाड़ियों में भ्रमण करते हुए एक पहुँचे हुए महात्मा से उनका साक्षात हुआ। उसी दिन वे उनके शिष्य हो गये।

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