कहानी संग्रह >> गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह) गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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गल्प-लेखन-कला की विशद रूप से व्याख्या करना हमारा तात्पर्य नहीं। संक्षिप्त रूप से गल्प एक कविता है
क्रूर काल ने लक्ष्मी को अपना वाक्य पूरा नहीं करने दिया, किन्तु यह अधूरा वाक्य ही बैरिस्टर दीक्षित के हृदय पर अमर छाप डाल गया। लक्ष्मी की उन्मीलित आँखें जाने कैसी व्यथा छोड़ गई थीं, वे टूटते हुए शब्द विनय की ऐसी अनन्त सीमा का दिग्दर्शन करा गए थे कि बैरिस्टर दीक्षित ने अनेक विपत्तियों का सामना किया, किन्तु दूसरा विवाह नहीं किया उस दिन से उनके कार्यक्रम में बच्चों का लालन-पालन और मृत लक्ष्मी के चित्र का पूजन सम्मिलित हो गया।
स्त्री के देहावसान के समय बैरिस्टर दीक्षित नवयुवक ही थे। नवीन सभ्यता, पश्चिमीय शिक्षा और फैशनेबिल सोसाइटी का रंग उनमें भी पूर्ण मात्रा में व्याप्त था और शायद उनके वे ही पूर्व संस्कार चेष्टा करने पर भी उनके मन को चलायमान करते थे। हमेशा उनके हृदय में देवासुर–संग्राम छिड़ा रहता। कितनी बार आसुरी वृत्तियों ने अपनी विजय-घोषणा करने का निश्चय कर लिया, लेकिन लक्ष्मी की उन आँखों और शब्दों ने सदा उनकी रक्षा की।
संयम के आराधना हेतु स्त्री–जाति से सर्वथा दूर रहने का उन्होंने निश्चय किया। उनके कई मित्र ऐसे थे, जिनकी स्त्रियों से भी उनकी काफी घनिष्ठता थी। लक्ष्मी की मृत्यु के बाद उन लोगों ने बैरिस्टर दीक्षित को पूर्ण सहानुभूति के साथ बच्चों के लालन-पालन में सहायता भी दी, किन्तु बैरिस्टर दीक्षित ने उन लोगों की जरा भी परवाह न करके उनसे मिलना-जुलना तक बन्द कर दिया। वे अपने चारों ओर के वायुमंडल में अब स्त्री के नाम को भी स्थान देना नहीं चाहते थे।
बच्चों को पालने वाली पुरानी आया से भी कह दिया गया कि अब घर जाओ, तुम्हारी पेंशन प्रतिमास मनीआर्डर द्वारा पहुँचती रहेगी। इस मामले में बैरिस्टर दीक्षित ने न आया के आँसुओं की चिन्ता की, न बच्चों के मानसिक क्लेश की। हाँ, बच्चों को स्वतंत्रता थी कि जब इच्छा हो, आया के घर जाकर उससे मिल आया करें। उनके अन्य कर्मचारियों में जो सपत्नीक थे, उनके वेतन में वृद्वि के साथ उन्हें आज्ञा हुई कि अलग घर लेकर परिवार को रखें।
यहाँ तक कि बैरिस्टर साहब ने किसी स्त्री मुवक्किल का केस भी लेना छोड़ दिया अपनी कन्या से बोर्डिंग-हाउस में मिलने तक न जाते, क्योंकि मुख्य अध्यापिका से मुलाकात किये बिना लड़कियों से मिल सकना बोर्डिंग-हाउस के नियमानुसार सम्भव नहीं था। छुट्टियों में सुनीता का बड़ा भाई उसे लिवा लाता, तभी पिता-पुत्री एक दूसरे को देख सकते थे।
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