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गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :255
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8446

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गल्प-लेखन-कला की विशद रूप से व्याख्या करना हमारा तात्पर्य नहीं। संक्षिप्त रूप से गल्प एक कविता है

स्वप्न

श्रीमती कमलादेवी चौधरी

(हिन्दी की कहानी–लेखिकाओं में श्रीमती कमलादेवी चौधरी का स्थान अद्वितीय है! उनकी कहानियों की स्वाभाविकता, भाषा की ओजस्विता, चरित्रों का मार्मिक चित्रण एवं उनकी सभी कहानियों में बहती एक नारी के हृदय की ममता उनके विशेष गुण हैं। इतने गुणों के साथ संभव न था कि वे एक प्रथम श्रेणी की कहानी लेखिका न होतीं। यह प्रस्तुत कहानी उनकी कला का उचित प्रतिनिधित्व करती है।
आपकी कहानियों के दो संग्रह ‘उन्माद’ और ‘पिकनिक’ प्रकाशित हो चुके हैं।)

‘महात्माजी, सुरीला की जीवन–नौका की पतवार अब मैं आपके हाथों में देता हैं। आपकी कृपा–दृष्टि के सिवा संसार में इस दुखिया के लिए दूसरा शान्ति का साधन नहीं है।’

‘अपनी एकमात्र कन्या को अपने समीप न रखकर आश्रम में छोड़ने के लिए विकल क्यों हो?’

‘महात्माजी, कभी आप मेरे मित्र थे, मेरी जिन्दगी आपसे छिपी नहीं है। आप महान आत्मा हो; आपने अपने जीवन में घोर परिवर्तन कर लिया है–आज तपस्वी हो। किन्तु मैं–मैं जो आज से बीस वर्ष पहले था, बिलकुल वही हूँ। केवल इतना अन्तर हुआ है कि जिस दिन से सुरीला विधवा हुई है, मुझे अपने दुर्व्यसन नरकाग्नि के समान जला रहे हैं।

‘महात्माजी, मैं महानीच हूँ, पापी हूँ, व्यभिचारी हूँ, किन्तु मेरी पुत्री सुरीला देवी है, पवित्रता की प्रतिमा है। गुरुदेव उस पर दया करो। मुझे भय है कि मुझ पामर के दुर्व्यसनों का प्रभाव कहीं उसके पुनीत विचारों को दूषित न कर दे। अब तक वह पूर्णतः संसार के संसर्ग में नहीं आई है। वह कवि है, और किसी और लोक में विचरण करती रहती है, किन्तु नवयौवन का विकास उसे इस पापी संसार से परिचित करा के रहेगा। देव, उसकी पवित्रता की रक्षा करो। वह विधवा है! मैं उसका पतित पिता उसकी आत्मोन्नति का इच्छुक हूँ! मेरी अन्तिम अभिलाषा है, मेरी देवी समान पुत्री देवी ही बनकर रहे।’

महात्मा ने सुरीला को आश्रम में रखना स्वीकार कर लिया।

महात्मा कभी बैरिस्टर थे। उनकी स्त्री लक्ष्मी ने अन्तिम समय में कहा था–दूसरा विवाह न करना, वरना मेरे बच्चों की दुर्गति हो जायगी, दूसरी माँ प्यार के बदले इनसे...

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