कहानी संग्रह >> गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह) गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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गल्प-लेखन-कला की विशद रूप से व्याख्या करना हमारा तात्पर्य नहीं। संक्षिप्त रूप से गल्प एक कविता है
मेरे माँ नहीं है, भाई-बहन भी नहीं है, मैं अकेली हूँ, लेकिन यह अकेलापन अब तक कुछ अखरता नहीं है। कितने तो काम हैं, मुझे यह सोचने की फुर्सत ही कब मिलती है कि अकेली हूँ।
पति के मैंने दर्शन ही नहीं किये। कभी-कभी मन दुःखी अवश्य होने लगता है। मेरा विवाह पिता ने इतनी छोटी उम्र में क्यों कर दिया? विलायत जाते समय पतिदेव मुझसे मिलने आये थे, पर लज्जावश उनके समीप गई ही नहीं। वे नाराज होकर प्रातः ही चले गये, और विदेश ही में उनकी मृत्यु हो गई। यह ख्याल अवश्य हृदय को ठेस पहुँचाता है।
पिता को छोड़कर यहाँ कैसे रहूँगी? यह आश्रम तो मेरे घर जैसा भी नहीं है। गंगा का किनारा होने से कुछ सुहावना अवश्य जान पड़ता है। मुझे यहाँ फुलवारी लगाने को कहाँ मिलेगा? कविताएं भी शायद ही लिख सकूँ। महात्मा की आज्ञा पर ही चलना होगा न।
और फिर पिताजी को कितना कष्ट होगा? अँधियाले ही चाय पीते हैं। कोई नौकर भी इतना सबेरे न उठ सकेगा। और मेरी मैना मुझे न देखकर व्याकुल हो जायगी। मदनगौर बिना मेरे खिलाये आधा चारा भी नहीं खायगा।
कहीं नौकर ने संध्या समय कबूतरों को बन्द नहीं किया, तो उन्हें बिल्ली खा जायगी। मेरे पीछे मेरी फुलवारी उजड़ जायगी। मेरी सारी चिड़ियाँ मर जायेंगी। मिसरानी के बनाये खाने से पिताजी का पेट भी नहीं भरेगा। वे और भी दुबले हो जायंगे खाँसी भी बढ़ जायगी।
सम्भव है, हर समय शराब ही पीते रहें। अभी तो मैं बहुत देर तक उन्हें बातों में लगा लेती हूँ, ताश खेलती हूँ और संध्या को चिड़िया खाने की सैर कराती हूँ। फिर संध्या से ही बोतल लेकर बैठ जाया करेंगे। परमात्मा, क्या होगा? मैं तो चुपके से शराब में पानी मिला देती हूँ, मेरे पीछे खालिस शराब की पूरी बोतल ही पी गये, तो फिर मुँह से खून गिरने लगेगा। कुछ भी हो, मैं यहाँ नहीं रहूँगी। मेरे पिता शराब पीते हैं, तो क्या हुआ? उनके बराबर मेरे लिए कौन हो सकता है? कौन मुझे वैसा प्यार करेगा? मैं यहाँ किसी प्रकार भी नहीं रहूँगी, किन्तु पिता को कैसे समझाऊँ, वे नाराज हो जायेंगे, दुखी होंगे। सोचते-सोचते सुरीला के सुन्दर नेत्रों से बड़े-बड़े मोती जैसे आँसू टपकने लगे।
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