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गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :255
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8446

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गल्प-लेखन-कला की विशद रूप से व्याख्या करना हमारा तात्पर्य नहीं। संक्षिप्त रूप से गल्प एक कविता है

शत्रु

श्री ‘अज्ञेय’

(श्री सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ का जन्म एक बहुत ही प्रतिष्ठित एवं सम्भ्रान्त ब्राह्मण कुल में १९१३ ई. में हुआ और जब पहले-पहल १९३२ में वे अपनी रचनाएँ लेकर हिन्दी संसार में प्रविष्ट हुए तो लोगों को उनकी मेधा और प्रतिभा पर आश्चर्य हुआ। सचमुच ही श्री अज्ञेय का हिन्दी-संसार में आगमन एक विशेष घटना है। उनकी प्रतिभा सर्वतोमुखी है–एक कवि, कहानी-लेखक, उपन्यास-लेखक, निबंध-लेखक, शिल्पी, चित्रकार सभी के रूप में वे बहुत ही सफल हैं। अँग्रेजी पर भी अच्छा अधिकार है और अँग्रेजी में भी बहुत-सी कविताएँ लिखी हैं। कहानियों के अन्दर आपकी इतनी गहरी वेदना होती है जो किसी को हिलाए बिना नहीं रह सकती। आपका एक उपन्यास ‘शेखरः एक जीवनी’ कहानियों का एक संग्रह ‘विपथगा’ और कविताओं का एक संग्रह ‘भग्नदूत’ प्रकाशित हुए हैं।)

ज्ञान को एक रात सोते समय भगवान ने स्वप्न में दर्शन दिये, और कहा–ज्ञान, मैंने तुम्हें अपना प्रतिनिधि बनाकर संसार में भेजा है। उठो, संसार का पुनर्निर्माण करो।

ज्ञान जाग पड़ा। उसने देखा, संसार अन्धकार मंो पड़ा है। और मानव जाति उस अन्धकार में पथभ्रष्ट होकर विनाश की ओर बढ़ती चली जा रही है। वह ईश्वर का प्रतिनिधि है, तो उसे मानव–जाति को पथ पर लाना होगा, अन्धकार से बाहर खींचना होगा, उसका नेता बनकर उसके शत्रु से युद्ध करना होगा।

और वह जाकर चौराहे पर खड़ा हो गया और सबको सुनाकर कहने लगा-मैं मसीहा हूँ, पैगम्बर हूँ। भगवान का प्रतिनिधि हूँ। मेरे पास तुम्हारे उद्धार के लिए एक संदेश है।

लेकिन किसी ने उसकी बात नहीं सुनी। कुछ उसकी ओर देखकर हँस पड़ते, कुछ कहते पागल है, अधिकांश कहते, यह हमारे धर्म के विरुद्ध शिक्षा देता है, नास्तिक है, इसे मारो! और बच्चे उसे पत्थर मारा करते।

आखिर तंग आकर वह एक अँधेरी गली में छिपकर बैठ गया, और सोचने लगा। उसने निश्चय किया कि मानव जाति का सबसे बड़ा शत्रु है धर्म, उसी से लड़ना होगा।

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