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गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :255
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8446

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गल्प-लेखन-कला की विशद रूप से व्याख्या करना हमारा तात्पर्य नहीं। संक्षिप्त रूप से गल्प एक कविता है


बेसुध-सी सुरीला को गोद में लेकर शेखर आश्रम से बाहर हो गया। सारे आश्रम में कोलाहल मच गया। घटना का पता लगाने के लिए आश्रम-वासी गुरु के समीप गये, लेकिन दरवाजे बन्द थे। सबों ने समझा, गुरु समाधि में हैं।

शेखर ने बिना कुछ कहे ही साथियों से बिदा माँग ली।

पिता से चिपट कर सुरीला खूब रोई। पिता भी रोने लगे।

‘अच्छा किया’ आ गई सुरीला! अब मेरा अन्तिम समय निकट जान पड़ता है।’

बात करते–करते उनके मुँह से लाल-लाल रक्त बहने लगा। शेखर उपचार में लगा। सुरीला और भी बिलख उठी–मुझे अपने से जुदा करके तुमने अपनी क्या गति कर ली पिताजी!

नौकर ने शेखर के नाम एक पत्र लाकर दिया–

‘शेखर, सुरीला ने मेरी आँखें खोल दीं। मैं भ्रम में था। जिसे अब तक स्वप्न समझा था, वास्तव में हकीकत थी और जिसे हकीकत समझा था, वही स्वप्न था। मुझे अपने मार्ग का दिग्दर्शन अब हुआ। मैं जाता हूँ और आश्रम का भार तुम दोनों पर छोड़ता हूँ। तुम सुरीला से विवाह कर लो, तुम्हारा कल्याण होगा। मानुषिक प्रेम द्वारा ही तुम्हें दिव्य प्रेम का परिचय मिलेगा। प्रवृत्तियों के दमन करने से नहीं, बल्कि उन्हें आध्यात्मिक रूप में परिवर्तित करने से ही वास्तविक शांति की प्राप्ति होगी। यही तुम्हारे गुरु का अन्तिम उपदेश है।’

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