कहानी संग्रह >> गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह) गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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गल्प-लेखन-कला की विशद रूप से व्याख्या करना हमारा तात्पर्य नहीं। संक्षिप्त रूप से गल्प एक कविता है
अनेक देवताओं के साथ गुरु भी विमान पर बैठे पुष्प –वर्षा कर रहे हैं। भक्तवत्सल भगवान कृष्ण ने मुरलिका ऊपर उठा कर गुरु को समीप आने का संकेत किया। भक्ति में उन्मत्त होकर गुरु विमान से कूद पड़े और भगवान ने उन्हें अपने में लीन कर लिया। अब भगवान कृष्ण और गुरु जुदा नहीं थे।
फिर एक बार राधिका के मुख पर दृष्टि डालकर मुरली मनोहर ने कहा प्रिये, संसार में तुम सुरीला थीं और मैं महात्मा था। अभी मृत्युलोक में फिर चलकर प्राणियों का उद्धार करना है।
इतना कह कर भगवान पूर्ण गति से नृत्य करने लगे। रासलीला समाप्त कर वे राधिका को लेकर फिर संसार में चले आये। अभी पृथ्वी का पूर्णोद्धार नहीं हुआ था।
राधिका बोली– प्राणेश, क्या मुझे अभी और विलग रहना होगा? इस बार की जुदाई तो सीता–वनवास से भी अधिक हो गई, देव! कृष्ण ने राधिका का आलिंगन कर लिया और बोले–नहीं प्रिये, अब हम तुम साथ रहकर ही पृथ्वी का उद्धार करेंगे।
जागकर भी गुरु को चेतना नहीं हुई उन्मत्त की भाँति सुरीला का हाथ पकड़ कर बोले–राधिका, प्रिये...
सुरीला गुरु का हाथ झटक कर चीखती हुई भागी–मुझे बचाओ, शेखर! शेखर जल की बाल्टी लेकर सीढ़ियाँ पार कर चुका था। यह दृश्य देखकर अप्रतिभ-सा रह गया। उसी समय सुरीला बिजली की भाँति टूट कर उसके पैरों के समीप गिर पड़ी। बाल्टी की कोर माथे में भुक गई और खून की धारा बह निकली।
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