कहानी संग्रह >> गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह) गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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गल्प-लेखन-कला की विशद रूप से व्याख्या करना हमारा तात्पर्य नहीं। संक्षिप्त रूप से गल्प एक कविता है
डाची
(आपका जन्म १९१० में जालन्धर में हुआ था। परिवार गरीब था, बच्चे अनेक थे इस कारण श्री ‘अश्क’ का बचपन गरीबी में बीता और बड़े होते ही उनको अपनी जीविका की फिक्र करनी पड़ी। प्रारम्भ में आपने उर्दू में कहानियाँ लिखीं, कविताएँ लिखीं और पत्रकार भी रहे। बाद में आपने अपना ध्यान हिन्दी की ओर खींचा और १९३३ ई. से हिन्दी में आपकी कहानियाँ प्रकाशित होना शुरू हुईं। आप सफल कवि और नाटककार तथा उपन्यास लेखक भी हैं। आपकी कहानियों की स्वाभाविकता और जीवन से उनका सामीप्य उनके विशेष गुण हैं।
आपकी कविताओं का एक संग्रह ‘प्रात प्रदीप’ नाटक ‘जय-पराजय’ और ‘स्वर्ग की झलक’, उपन्यास ‘सितारों के खेल’ प्रकाशित हुए हैं।)
काट* (*काट–गाँव।) पी-सिकन्दर के मुसलमान जाट बाकर को अपने माल की ओर लालसा-भरी निगाहों से ताकते देखकर चौधरी नन्दू वृक्ष की छाँह में बैठे-बैठे अपनी ऊँची घरघराती आवाज में ललकार उठा-‘रे रे अठे के करे है?’ और उसकी छः फुट लम्बी सुगठित देह, जो वृक्ष के तने के साथ आराम कर रही थी, तन गई और बटन टूटे होने के कारण मोटी खादी के कुर्ते से उसका विशाल वक्षस्थल और उसकी बलिष्ठ भुजाएँ दृष्टिगोचर हो उठीं!
बाकर तनिक समीप आ गया। गर्द से भरी हुई छोटी नुकीली दाढ़ी, शरई मूछों के ऊपर गढ़ों में धँसी हुई दो आँखों में निमिष-मात्र के लिए चमक पैदा हुई और जरा मुसकराकर उसने कहा– डाची* (*डाची–साँडनी।) देख रहा था चौधरी, कैसी खूबसूरत और जवान है, देखकर भूख मिटती है।
अपने माल की प्रशंसा सुनकर चौधरी का तनाव कुछ कम हुआ, खुश होकर बोला–किसी साँड*?(*कौनसी डाची?)
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