उपन्यास >> गोदान’ (उपन्यास) गोदान’ (उपन्यास)प्रेमचन्द
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‘गोदान’ प्रेमचन्द का सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपन्यास है। इसमें ग्रामीण समाज के अतिरिक्त नगरों के समाज और उनकी समस्याओं का उन्होंने बहुत मार्मिक चित्रण किया है।
मिस मालती, मेहता, खन्ना, तंखा और राय साहब सभी विराजमान थे।
खेल शुरू हुआ, तो मिर्ज़ा ने मेहता से कहा–आइए डाक्टर साहब, एक गोई हमारी और आपकी भी हो जाय।
मिस मालती बोली–फिलासफर का जोड़ फिलासफर ही से हो सकता है।
मिर्ज़ा ने मूँछों पर ताव देकर कहा–तो क्या आप समझती हैं, मैं फिलासफर नहीं हूँ। मेरे पास पुछल्ला नहीं है; लेकिन हूँ मैं फिलासफर : आप मेरा इम्तहान ले सकते हैं मेहताजी!
मालती ने पूछा–अच्छा बतलाइए, आप आइडियलिस्ट हैं या मेटीरियलिस्ट।
‘मैं दोनों हूँ।’
‘यह क्योंकर?’
‘बहुत अच्छी तरह। जब जैसा मौका देखा, वैसा बन गया।’
‘तो आपका अपना कोई निश्चय नहीं है।’
‘जिस बात का आज तक कभी निश्चय न हुआ, और न कभी होगा, उसका निश्चय मैं भला क्या कर सकता हूँ! और लोग आँखें फोड़कर और किताबें चाटकर जिस नतीजे पर पहुँचते हैं, वहाँ मैं यों ही पहुँच गया। आप बता सकती हैं, किसी फिलासफर ने अक्ली गद्दे लड़ाने के सिवाय और कुछ किया है?’
डाक्टर मेहता ने अचकन के बटन खोलते हुए कहा–तो चलिए हमारी और आपकी हो ही जाय। और कोई माने या न माने, मैं आपको फिलासफर मानता हूँ।
मिर्ज़ा ने खन्ना से पूछा–आपके लिए भी कोई जोड़ ठीक करूँ?
मालती ने पुचारा दिया–हाँ, हाँ, इन्हें जरूर ले जाइए मिस्टर तंखा के साथ।
खन्ना झेंपते हुए बोले–जी नहीं, मुझे क्षमा कीजिए।
मिर्ज़ा ने रायसाहब से पूछा–आपके लिए कोई जोड़ लाऊँ?
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