उपन्यास >> गोदान’ (उपन्यास) गोदान’ (उपन्यास)प्रेमचन्द
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‘गोदान’ प्रेमचन्द का सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपन्यास है। इसमें ग्रामीण समाज के अतिरिक्त नगरों के समाज और उनकी समस्याओं का उन्होंने बहुत मार्मिक चित्रण किया है।
‘तो जिसे चाहो बुला लो, मैंने तो नाग को इसलिए कहा था कि वह कई बार आ चुके हैं।’
‘मिस मालती को क्यों न बुला लूँ? फीस भी कम और बच्चों का हाल लेडी डाक्टर जैसा समझेगी, कोई मर्द डाक्टर नहीं समझ सकता।’
गोविन्दी ने जलकर कहा–मैं मिस मालती को डाक्टर नहीं समझती।
खन्ना ने भी तेज आँखों से देखकर कहा–तो वह इंगलैंड घास खोदने गयी थी, और हजारों आदमियों को आज जीवन-दान दे रही है; यह सब कुछ नहीं है?
‘होगा, मुझे उन पर भरोसा नहीं है। वह मर्दों के दिल का इलाज कर लें। और किसी की दवा उनके पास नहीं है।’
बस ठन गयी। खन्ना गरजने लगे। गोविन्दी बरसने लगी। उनके बीच में मालती का नाम आ जाना मानो लड़ाई का अल्टिमेटम था। खन्ना ने सारे कागज़ों को जमीन पर फेंककर कहा–तुम्हारे साथ जिन्दगी तलख हो गयी। गोविन्दी ने नुकीले स्वर में कहा–तो मालती से ब्याह कर लो न! अभी क्या बिगड़ा है, अगर वहाँ दाल गले।
‘तुम मुझे क्या समझती हो?’
‘यही कि मालती तुम-जैसों को अपना गुलाम बनाकर रखना चाहती है, पति बनाकर नहीं।’
‘तुम्हारी निगाह में मैं इतना जलील हूँ?’
और उन्हींने इसके विरुद्ध प्रमाण देने शुरू किया। मालती जितना उनका आदर करती है, उतना शायद ही किसी का करती हो। राय साहब और राजा साहब को मुँह तक नहीं लगाती; लेकिन उनसे एक दिन भी मुलाकात न हो, तो शिकायत करती है।
गोविन्दी ने इन प्रमाणों को एक फूँक में उड़ा दिया–इसीलिए कि वह तुम्हें सबसे बड़ा आँखों का अन्धा समझती है, दूसरों को इतना आसानी से बेवकूफ नहीं बना सकती।
खन्ना ने डींग मारी–वह चाहें तो आज मालती से विवाह कर सकते हैं। आज, अभी...
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