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गुप्त धन-1 (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :447
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8461

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प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ


मलका मख़मूर ने एक बड़ी फ़ौज खड़ी की और बुलहवस खाँ को चढ़ाइयों पर रवाना किया। उसने इलाके पर इलाके और मुल्क पर मुल्क जीतने शुरू किये। सोने-चाँदी और हीरे-जवाहरात के अम्बार हवाई जहाजों पर लदकर राजधानी को आने लगे।

लेकिन आश्चर्य की बात यह थी कि इन रोज़-ब-रोज़ बढ़ती हुई तरक्कियों से मुल्क के अन्दरूनी मामलों में उपद्रव खड़े होने लगे। वह सूबे जो अब तक हुक्म के ताबेदार थे, बग़ावत के झण्डे खड़े करने लगे। कर्णसिंह बुन्देला एक फ़ौज लेकर चढ़ आया। मगर अजब फ़ौज थी, न कोई हरबे-हथियार, न तोपें, सिपाहियों के हाथों में बंदूक और तीर-तुपुक के बजाय बरबत-तम्बूरे और सारंगियाँ, बेले, सितार और ताऊस थे। तोपों की धनगरज सदाओं के बदले तबले और मृदंग की कुमक थी। बम गोलों की जगह जलतरंग, आर्गन और आर्केस्ट्रा था। मलका मख़मूर ने समझा आन की आन में इस फ़ौज को तितर-बितर करती हूँ। लेकिन ज्यों ही उस की फ़ौज कर्णसिंह के मुकाबिले में रवना हुई, लुभावने, आत्मा को शान्ति पहुँचाने वाले स्वरों की वह बाढ़ आयी, मीठे और सुहाने गानों की वह बौछार हुई कि मलका की सेना पत्थर की मूरतों की तरह आत्मविस्मृत होकर खड़ी रह गयी। एक क्षण में सिपाहियों की आँखें नशे में डूबने लगीं और वह हथेलियाँ बजा-बजा कर नाचने लगे, सर हिला-हिलाकर उछलने लगे, फिर सबके सब बेजान लाश की तरह गिर पड़े। और सिर्फ़ सिपाही ही नहीं, राजधानी में भी जिसके कानों में यह आवाजें गयीं वह बेहोश हो गया। सारे शहर में कोई ज़िन्दा आदमी नज़र न आता था। ऐसा मालूम होता था कि पत्थर की मूरतों का तिलस्म है। मलका अपने जहाज़ पर बैठी यह करिश्मा देख रही थी। उसने जहाज़ नीचे उतारा कि देखूँ क्या माजरा है? पर उन आवाजों के कान में पहुँचते ही उसकी भी वही दशा हो गयी। वह हवाई जहाज़ पर नाचने लगी और बेहोश होकर गिर पड़ी। जब कर्णसिंह शाही महल के करीब जा पहुँचा और गाने बन्द हो गये तो मलका की आँखें खुलीं जैसे किसी का नशा टूट जाये। उसने कहा—मैं वही गाने सुनूँगी, वही राग, वही अलाप, वही लुभाने वाले गीत। हाय, वह आवाजें कहाँ गयीं। कुछ परवाह नहीं, मेरा राज जाये, पाट जाये, में वही राग सुनूँगी।

सिपाहियों का नशा भी टूटा। उन्होंने उसके स्वर में स्वर मिलाकर कहा—हम वही गीत सुनेंगे, वही प्यारे-प्यारे मोहक राग। बला से हम गिरफ्तार होंगे, गुलामी की बेड़ियाँ पहनेंगे, आजादी से हाथ धोयेंगे पर वही राग, वही तराने वही तानें, वही धुनें।

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